नई दिल्ली : चीनी मंडी
आंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के रिकॉर्ड उत्पादन से चीनी दर में मंदी देखि जा रही है, दिन ब दिन चीनी की कीमतों में गिरावट हो रही है. आंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के कम दामों के चलते निर्यात घाटे कासौदा साबित होने की सम्भावना के चलते निर्यात बिल्कुल ही ठप्प हो चुकी है।सरकार ने अतिरिक्त चीनी की समस्या से निपटने के लिए चीनी मिलों के लिए २० लाख मेट्रिक टन का निर्यात कोटा तय किया था,फिर भी दरों की गिरावट ने निर्यात प्रभावित हुई है और इसीलिए सरकार को निर्यात की समय सीमा बढ़ानी पड़ी क्योंकि अभी तक केवल ५ लाख मेट्रिक टन चीनी ही निर्यात हुई है ।
घरेलू बाजार में भी मांग घटी
घरेलू बाजार के भीतर भी स्टाकिस्ट और थोक उपभोक्ताओं की कमजोर मांग के बीच चीनी की कीमतों में दबाव दिखाई देरहा है । चीनी के बड़े व्यापारियों के साथ ही शीतपेय, कन्फेक्शनरों और आइसक्रीमनिर्माताओं जैसे बड़े चीनी उपभोक्ताओं से चीनीकी मांग ने चीनी की कीमतों पर दबाव डालना जारी रखा है।देश में ३०० लाख मेट्रिक टन चीनी का उत्पादन हुआ, जब की घरेलू बाजार में हर साल २५० लाखमेट्रिक टन चीनी की जरूरत होती है । अतिरिक्त चीनी से गन्ना किसान और चीनी मिलों को नुकसान हो रहा है ।इसके चलते केंद्र सरकार ने भी अतिरिक्त चीनी की समस्या से निपटने के लिए निर्यात कोटा,बफर स्टॉक जैसे कदम उठाये, लेकीन आंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की दर प्रति क्विंटल १६०० से १८०० के बीच ही है, जो घरेलू बाजार से भी कम है, इसकी वजह सरकार का निर्यात का फैसला कारगर साबितनहीं हुआ ।
…क्या कहती है आईसीआरए रिपोर्ट
आईसीआरए की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2017-18 के विपणन वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) में चीनी उत्पादन 32.25 मिलियन टन के साथ सर्वकालिक रिकॉर्ड तक पहुंचने का अनुमान जताया जा रहा है। 1अक्टूबर 2018 से शुरू होनेवाले चीनी हंगाम में चीनी उत्पादन में वृद्धि होने का अनुमान है, लेकिन चीनी की कम कीमत के कारण मिलों को घाटा होने की संभावना है। 2018 में चीनी कीमतों पर दबाव केसाथ-साथ, गन्ना उत्पादन की उच्च लागत (एसएमपी और एफआरपी) के कारण मिलों की मुनाफे में गिरावट आने की संभावना है। आनेवाले समय में चीनी उद्योग को सरकारी वित्तीय सहायता मिलनी बहुत हीजरूरी है।उत्तर प्रदेश की चीनी उद्योग ने राज्य सरकार से मदत की गुहार लगाई भी है, और सरकार जल्द ही कोई फैसला लेने कीसम्भावना जताई जा रही है ।