नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने गुरुवार को ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को चुनाव आयोग का आयुक्त नियुक्त किया।पूर्व आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे के बाद चुनाव आयुक्त का पद खाली हो गया था।लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही दिन बचे हैं और चुनाव आयुक्त के इस्तीफा देने से हड़कंप मच गया था।इसके बाद, प्रधान मंत्री की समिति ने दो सेवानिवृत्त अधिकारियों, ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को चुना।
कांग्रेस नेता सांसद अधीर रंजन चौधरी प्रधानमंत्री की समिति में एकमात्र विपक्षी नेता है।चौधरी ने मीडिया से बातचीत में यह जानकारी दी।चौधरी ने बताया कि, कमेटी के समक्ष उत्पल कुमार सिंह, प्रदीप कुमार त्रिपाठी, इंदभर पांडे, सुखबीर संधू, सुधीर कुमार और गंगाधर रहाटे के नाम थे।उसमें से हमने ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को चुना।
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दी गई खबर के मुताबिक, अधीर रंजन चौधरी ने भी समिति के कामकाज पर नाराजगी जताई है।उन्होंने कहा कि, बैठक से पहले अधिकारियों की सूची हमें उपलब्ध कराने की मांग की गई थी। हालांकि, चौधरी ने दावा किया है कि उन्हें बुधवार को 212 अधिकारियों की सूची मिल गई।उधर, सरकारी सूत्रों के मुताबिक, चौधरी को 236 नामों वाली पांच सूचियां भेजी गई थी।
पूरी सूची में भारत सरकार के 92 सेवानिवृत्त अधिकारी शामिल थे। जो सचिव या उसके समान पद पर कार्य कर चुके हों। इसके अलावा, वर्तमान में सरकारी सेवा में सचिवों या उस रैंक के अधिकारियों के 93 नाम थे। इसमें पिछले एक साल में विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए 15 अधिकारी शामिल हैं।
केंद्रीय चुनाव आयुक्त के पद से अरुण गोयल के जल्दबाजी में दिए गए इस्तीफे को लेकर केंद्रीय चुनाव आयोग, केंद्र सरकार और खुद गोयल ने पूरी तरह चुप्पी साध रखी है।हालांकि, इस इस्तीफे के पीछे केंद्रीय चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के साथ गोयल के मतभेद बताए जा रहे है।इस पर विपक्ष ने केंद्र सरकार और बीजेपी पर निशाना साधा।बेहद अनुशासित अधिकारी के रूप में ख्याति रखने वाले गोयल के बारे में कहा जाता है कि, पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव की समीक्षा को लेकर राजीव कुमार से उनकी तीखी असहमति थी। गोयल पश्चिम बंगाल का दौरा बीच में ही छोड़कर दिल्ली लौट आये,इसलिए राजीव कुमार ने 5 मार्च को अकेले प्रेस कॉन्फ्रेंस की।चार दिन बाद शनिवार को गोयल ने अपना इस्तीफा सीधे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेज दिया और इसे उसी दिन स्वीकार कर लिया गया।यह भी कहा जा रहा है कि विवाद में मध्यस्थता की केंद्र सरकार की कोशिशें नाकाम हो गई है।