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मुंबई : चीनी मंडी
चीनी उद्योग अधिशेष स्टॉक के कारण आर्थीक विपत्ती में पुरी तरही से फंस गया है। चीनी की कीमतें तेजी से घट रही हैं और मांग काफी खराब है। गन्ने का बकाया लगातार बढने के साथ चीनी मिलें बड़ी मुसीबत में हैं।
हालांकि सरकार मासिक रिलीज मेकेनिज्म के साथ आया, जो चीनी अधिशेष को कम करने में एक अच्छा कदम साबित हुआ। लेकिन फिर भी मिलरों को न केवल मासिक कोटा बेचने में मुश्किल का सामना करना पड़ा, बल्कि उनके पैर भी कीचड़ में फंस गए हैं, जो निर्यात करने में असमर्थ थे।
कई हफ्तों से मुख्यमंत्री ने सरकार की सिफारिश की थी। खाद्य और सार्वजनिक वितरण ने बृहस्पतिवार को चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) प्रति क्विंटल 2900 से 3100 तक बढ़ाकर चीनी उद्योग में वृद्धि की दिशा में एक हरी झंडी दिखाई, जो उद्योग में आर्थीक तंगी को कम करने के लिए आशा की एक किरण लगती है।
एफआरफी बकाया पहले से ही गन्ना किसानों के बीच भारी संकट का कारण बना हुआ है, बृहस्पतिवार शाम तक ऐसा लग रहा था कि, चालू वर्ष में उनकी चुनौतियां कई गुना बढ़ेंगी। हालाँकि, एमएसपी की वृद्धि के साथ मिलर्स काफी आशावादी हैं कि, अब वे गन्ने के बकाए को त्वरित गति से साफ़ कर पाएंगे।
www.chinimandi.com के साथ बातचीत में, नेशनल फेडरेशन ऑफ़ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ लिमिटेड के कार्यकारी संचालक प्रकाश नाईकनवरे ने कहा की, एमएसपी वृध्दी आंशिक रूप से गन्ना बकाया को साफ करने में मदद करेगा, लेकिन इससे निर्यात को धीमा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि चीनी का अधिशेष बहुत बडा है और इसे कम करने की आवश्यकता है। मिलर्स को निर्यात पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
अब जब एमएसपी को बढ़ा दिया गया है, तो मूल्य समता को नुकसान पहुंचेगा, फिर भी अभी भी चीनी निर्यात के लिए हमारे पास कई मौके हैैं। यदि ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया से चीनी के बाजार में पहुंचने से पहले ही भारतीय मिलर्स द्वारा मार्च – अप्रैल के लिए निर्यात अनुबंध किए जाते हैं, तो इससे मिलर्स को फायदा हो सकता हैैं। अब मिलर्स के पास नुकसान होने पर भी निर्यात करने का समय है।
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