हिमाचल प्रदेश: सोलन में 4,700 हेक्टेयर से अधिक मक्का फसल ‘फॉल आर्मीवर्म’ से प्रभावित

सोलन:लगातार चौथे साल सोलन जिले में फॉल आर्मीवर्म ने मक्का की फसल को प्रभावित किया है, जिसके कारण 4,750 हेक्टेयर क्षेत्र में फसल प्रभावित हुई है। मक्का उत्पादकों को 15 से 20 प्रतिशत फसल के नुकसान की आशंका है। जब कीट मक्का की फसल पर हमला करता है, तो पौधे की पत्तियों पर लम्बी-लम्बी कागजी खिड़कियां दिखाई देती हैं। यह लक्षण कीड़े के लार्वा के कारण होता है।

मूल रूप से दक्षिण अमेरिका का मूल निवासी, फॉल आर्मीवर्म कुछ साल पहले अफ्रीकी देशों के माध्यम से कर्नाटक में आया था। दक्षिणी राज्य से उत्तर-पूर्वी राज्यों में पहुंचने के बाद, अब यह उत्तरी राज्यों में भी पहुंच गया है।

कृषि विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन और उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग को कीड़े के फैलने के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। सोलन की कृषि उपनिदेशक सीमा कंसल ने कहा, नाइट्रोजन के अत्यधिक उपयोग के कारण, पौधों की रोगों और कीटों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो जाती है। इसके बाद, विभिन्न प्रकार के रोग और कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं।कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने बताया कि, सोलन जिले के निचले इलाकों में अन्य इलाकों की तुलना में अधिक कीट प्रकोप हुआ है।

कंसल ने बताया कि, अब तक 4,750 हेक्टेयर मक्का की फसल में 10 से 15 प्रतिशत पौधे खेत के बीच में स्थानीय पैच के रूप में कीट ग्रसित पाए गए हैं। अधिकारियों ने किसानों को फसल का नियमित सर्वेक्षण करने जैसे कई उपाय करने के निर्देश दिए हैं। यदि खेत में 5 प्रतिशत से अधिक पौधे फॉल आर्मीवर्म से प्रभावित पाए जाते हैं, तो नियंत्रण उपाय शुरू किए जाने चाहिए।विशेषज्ञों का सुझाव है कि, सबसे पहले प्रभावित पौधों की सबसे ऊपरी पत्तियों/मध्य छल्लों को खेत की मिट्टी/रेत/राख से भर दें। यदि उसके बाद बारिश नहीं होती है, तो खेत में पानी भर दें। इससे कैटरपिलर मर जाएंगे। वे खेत में लाइट और फेरोमोन ट्रैप लगाने की सलाह देते हैं, साथ ही जैविक कीटनाशक जैसे बीटी (2 ग्राम प्रति लीटर पानी), नीम आधारित कीटनाशक (2 मिली प्रति लीटर पानी) और फफूंदनाशकों का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।

विशेषज्ञ कीटों को नियंत्रित करने के लिए जैविक उपाय भी सुझाते हैं। वे कहते हैं कि मक्के की फसल में ट्राइकोग्रामा, कोटेसिया, टेलीनोमस आदि परजीवियों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रयोगशाला में तैयार परजीवियों के अंडे खेतों में छोड़े जाएं।विशेषज्ञों का कहना है कि, अगर इन उपायों के बावजूद फॉल आर्मीवर्म का प्रकोप कम नहीं होता है, तो अंतिम उपाय के तौर पर स्पिनोसैड (0.3 मिली प्रति लीटर पानी), क्लोरोट्रानिलिप्रोल (0.3 मिली प्रति लीटर पानी), अमाबैक्टिन बेंजोएट (0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी), थायोडिकार्ब (2 ग्राम प्रति लीटर पानी), फ्लूबेंडामाइड (0.3 मिली प्रति लीटर पानी) या थायोमेथेक जैसे रसायनों का इस्तेमाल करें।

उन्होंने प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत में न छोड़ने की भी सलाह दी है, अन्यथा अगली पीढ़ी अन्य फसलों को नुकसान पहुंचाएगी।यह कीट 80 से अधिक फसलों को नुकसान पहुंचाता है, इसलिए इसके पुन: प्रजनन को रोकने के लिए सभी सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए।मक्का की फसल के साथ उड़द, लोबिया आदि दलहन की फसलें लगाकर मिश्रित फसल अपनाने की भी सिफारिश की गई है। मिश्रित फसल से फॉल आर्मीवर्म का प्रकोप कम होता है और मक्के की फसल को दालों से मुफ्त नाइट्रोजन मिलती है।

इन उपायों के अलावा, फॉल आर्मीवर्म की उपस्थिति को रोकने के लिए मुख्य फसल से 10 दिन पहले मक्के की फसल के चारों ओर नेपियर घास की तीन-चार लाइनें जाल फसल के रूप में लगाने की भी सिफारिश की गई है।सोलन जिले के विभिन्न हिस्सों में 23,600 हेक्टेयर में मक्का उगाया जाता है, जिससे 58,750 मीट्रिक टन उपज मिलती है।

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