मुंबई : चीनी मंडी
देश के चीनी उद्योग को बचने के लिए विदेश की कच्ची और परिष्कृत चीनी पर आयात शुल्क बढ़ाने के लिए सरकारद्वारा कदम उठाये जा रहे है। उद्योग और वाणिज्य मंत्रालयों सहित कुछ प्रमुख सरकारी एजेंसियां कल (गुरुवार) आयात शुल्क बढ़ाने के मुद्दे पर चर्चा करनेवाले हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतों में निरंतर गिरावट से चीनी उद्योग आर्थिक संकट से घिरा हुआ है, मिलों को आर्थिक संकट से निक्लालने के लिए उद्योग मंत्रालयद्वारा प्रयास किये जा रहे है । 2015 में भी ऐसी ही स्थिती से निपटने के लिए सरकार ने 20 प्रतिशत नियामक कर के साथ कच्चे और परिष्कृत चीनी दोनों पर ‘आयात शुल्क ‘ लगाया। तब से उसमे कोई भी बदलाव नही हुआ हैं।
चीनी मिलें घाटे में और उपभोक्ता भी…
लेकिन सरकार द्वारा चीनी मिलों को राहत देने के लिए उठाया गया कदम उपभोक्ताओं के हित के खिलाफ चला जाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमत में उल्लेखनीय गिरावट आई है – 2017 की पहली तिमाही में 0.43 डॉलर प्रति किलोग्राम से 2018 की इसी अवधि में 0.29 डॉलर प्रति किलो हो गई। घरेलू बाजार में भी चीनी की कीमत घट गई । घरेलू बाजार में चीनी की कीमत बहुत कम स्तर पर होनी चाहिए, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ हो । ट्रेडर्स आमतौर पर किसी भी वस्तू की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के तुरंत बाद प्रतिक्रिया देते हैं। लेकिन स्थानीय व्यापारियों ने केवल मामूली कीमत कम कर दी, जिससे उपभोक्ताओं को चीनी के घटते दाम का जादा फायदा हो नही रहा है ।
चीनी की कीमत कृत्रिम रूप से जादा
सच्चाई तो यह है कि राज्य की स्वामित्व वाली अक्षम चीनी मिलों की मदद के लिए चीनी की कीमत कृत्रिम रूप से उच्च स्तर पर रखी गई है। इन मिलों में चीनी के उत्पादन की लागत असामान्य रूप से अधिक है क्योंकि उनकी अप्रचलित मशीनरी, अक्षम प्रबंधन और भारी वित्तीय या अन्य अनियमितताएं । सरकार आमतौर पर आवश्यक खाद्य वस्तुओं को कर से बचाती है, लेकिन चीनी उसके लिए एक अपवाद है। चीनी कीमत को उच्च स्तर पर रखने के लिए विशेष कर औरआयात शुल्क में बढ़ोतरी के तरीके अपनाये जाते है, ताकि चीनी मिलें अपनी उपज महंगे दामों में बेच सकें।
सस्ती चीनी छोड़कर क्यूँ खरीदे महंगी
हालांकि, सरकार का यह दृष्टिकोण भी काम नहीं कर रहा है क्योंकि राज्य के स्वामित्व वाली मिलों को चीनी के बड़े स्टॉक का निपटान करना मुश्किल हो रहा है। इन मिलों को उत्पादन की लागत से बहुत कम कीमत पर चीनी बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। फिर भी उनकी चीनी आयातित चीनी से भी अधिक मूल्यवान बनी हुई है और व्यापारियों को इसे खरीदने में दिक्कत हो रही है। राज्य के स्वामित्व वाली चीनी मिलों हर साल पर्याप्त वित्तीय घाटे का सामना कर रही हैं। वास्तव में, ये चीनी मिलें करोडो रूपये के कर्जे ढेर के अलावा कुछ भी नहीं हैं और उनका कोई भविष्य भी नहीं दिखाई दे रहा ।
उपभोक्ताओं पर अन्याय क्यों ?
चीनी पर आयात शुल्क बढ़ाकर एक तरह से उपभोक्ताओं पर अन्याय किया जा रहा है, जिसमे उनकी कोई भी गलती नहीं । चीनी मिलों का प्रबंधन ही मिलों को कुशलता से चलाने में पूरी तरह असफल रहे हैं। सरकार को अपनी चीनी मिलों का आधुनिकीकरण करने या निजी क्षेत्र में स्थानांतरित करने के लिए एक उचित योजना तैयार करनी चाहिए। राज्य चीनी मिलों के कारण सरकार पर बहुत भारी बोझ पड़ता दिख रहा है और उसका असर उपभोक्ताओं पर तो साफ साफ दिखाई दे रहा है ।