नई दिल्ली: पिछले साल इंडोनेशिया में गंभीर सूखा पड़ने के कारण इसके घरेलू बाजार में चीनी की मांग काफी बढ़ गई है, जिसका पूरा लाभ भारत की चीनी मिलों को मिल सकता है। यही कारण है कि भारतीय मिलें अपने भंडार को कम करते हुए चीनी निर्यात करने को उत्सुक हैं। इससे मिलों को अच्छी आमदनी होने और उनकी लिक्वडिटी की स्थिति सुधरने की पूरी उम्मीद है।
नई रिपोर्ट के अनुसार, सूखे की वजह से इंडोनेशिया में इस बार चीनी सीजन शुरू होने में दो महीने की देरी हो सकती है, जिसके कारण वहां चीनी के आयात की जरूरत है। अपनी इस घरेलू मांग को पूरा करने के लिए इंडोनेशिया भारत से कच्ची चीनी आयात को पहले ही मंजूरी दे चुका है। इसके अलावा वहां की स्टेट लॉजिस्टिक्स एजेंसी ने अतिरिक्त चीनी आयात करने का प्रस्ताव भी रखा है, जिसका विस्तृत विवरण आना अभी बाकी है।
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज के एमडी (प्रबंध निदेशक) श्रीप्रकाश नायकनवारे ने चिनीमंडी न्यूज़ के साथ बातचीत में कहा कि चीनी आयात करना इंडोनेशिया की जरूरत है जो मौजूदा स्थितियों में भारत के चीनी उद्योग के इतिहास में एक नया निर्यात रिकॉर्ड बनाने का बेहतरीन मौका है।
भारत में इस सीजन में 6 मिलियन टन निर्यात कोटा का लक्ष्य है, जिसमें से 3.5 मिलियन टन के करार हो चुके हैं। इनमें इंडोनेशिया के साथ किए जाने वाले करार शामिल नहीं हैं।
अब इंडोनेशिया ने अपने ICUMSA लेवल में बदलाव लाते हुए इसे 1200 से घटाकर 600 करने के अलावा अपने आयात शुल्क को भी 15 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर रहा है जिससे भारतीय मिलरों के लिए वहां चीनी निर्यात करना आसान हो गया है।
उन्होंने बताया कि इंडोनेशिया को केवल कच्ची चीनी की जरूरत है, इसलिए भारतीय चीनी मिलें कच्ची चीनी का पर्याप्त उत्पादन कर इस मौके का पूरा फायदा उठाने की मजबूत स्थिति में हैं।
खबरों की माने तो, इंडोनेशिया में चीनी आयत को लेकर मंजूरी मिल गई है। देश के व्यापार मंत्री अगुस सुपरमांटो ने पत्रकारों से बातचीत में कहा की इंडोनेशिया ने मई तक घरेलू खपत के लिए 438,802 टन कच्ची चीनी के आयात के लिए परमिट जारी किया है। कृषि मंत्रालय के एक उच्च अधिकारी ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था की, फसल कटाई और चीनी उत्पादन, जो आमतौर पर मई में शुरू होता है, इस साल जून के अंत तक देरी से शुरू होने की संभावना है। उन्होंने कहा था की इंडोनेशिया चीनी खरीद के लिए भारत को प्राथमिकता दे सकता है। यह भारीतय चीनी मिलों के लिए निर्यात का सुनहरा मौका साबित होगा।
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