भारतीय चीनी मिलें अकेले हर साल बचा सकती हैं लगभग 300 लाख टन पानी: प्रो. नरेंद्र मोहन

नई दिल्ली: “चीनी उद्योग में पर्यावरण संबंधी मुद्दे- आगे की राह” विषय पर ‘जस्ट फॉर एनवायरनमेंट’ संस्था द्वारा एक वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें श्रीलंका, युगांडा, यमन और इंडोनेशिया से भी बड़ी संख्या में प्रतिनिधियों ने भाग लिया। हर्बी डिक्कुम्बरा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सीलोन शुगर इंडस्ट्रीज, श्रीलंका ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा की, चीनी उद्योग जिसे अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योग माना जाता है, उसे वायु और जल प्रदूषण के प्रबंधन के साथ-साथ सर्वोत्तम उपलब्ध तकनीकों को अपनाते हुए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर भी काम करने की आवश्यकता है। दरअसल, चीनी मिलों को बायो-गैस उत्पादन के लिए फिल्टर केक, चीनी और डिस्टिलरी इकाइयों से निकलने वाली बॉयलर राख को क्रमशः सिलिका नैनो कणों और पोटाश युक्त उर्वरक के उत्पादन के लिए परिवर्तित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि, इससे एक ओर जहां पर्यावरणीय मुद्दों को कम करने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर इससे मिलों को अतिरिक्त आय भी होगी।

प्रो. नरेंद्र मोहन, पूर्व निदेशक, राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर ने भारतीय जल उपलब्धता परिदृश्य प्रस्तुत करते हुए बताया कि, देश अब तक के सबसे खराब जल संकट के कगार पर है, जहां लगभग 60 करोड़ लोग पानी की कमी का सामना कर रहे हैं और लगभग दो लाख लोग हर साल दूषित जल से संबंधित समस्याओं के कारण मर जाते हैं। यह संकट और भी बदतर होने की संभावना है, क्योंकि 2030 तक मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि, चूंकि गन्ने में लगभग 70 प्रतिशत पानी होता है, जो प्रसंस्करण के दौरान निकल जाता है, इसलिए उचित उपाय करके इसका पुनः उपयोग किया जा सकता है और अकेले भारतीय चीनी मिलें हर साल लगभग 300 लाख टन पानी बचा सकती हैं।

भारतीय शर्करा एवं जैव ऊर्जा निर्माता संघ के सलाहकार डॉ. यशपाल सिंह ने गन्ने की खेती और उसके बाद प्रसंस्करण के दौरान पर्यावरण प्रभावों को नियंत्रित करने के विभिन्न तरीकों और साधनों पर चर्चा की। डॉ. सिंह ने कहा कि, नाइट्रोजन उर्वरकों के बढ़ते उपयोग से मिट्टी का अम्लीकरण, भूजल और सतही जल का प्रदूषण और ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ा है।डॉ.एस.वी.पाटिल, पूर्व प्रमुख और सलाहकार (अल्कोहल प्रौद्योगिकी), वसंतदादा शर्करा संस्थान, पुणे ने प्रसंस्करण के दौरान ताजे पानी के कम उपयोग के साथ अल्कोहल की रिकवरी बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकियों का सुझाव दिया।

मेसर्स यूवाई ट्राइएनवायरो प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.के.सिंघल ने चीनी मिलों के अपशिष्ट जल के उपचार के लिए डिगैसर और नाइट्रिफिकेशन आधारित तकनीक तथा डिस्टिलरी कंडेनसेट के लिए उनके द्वारा विकसित मेंब्रेन बायो-रिएक्टर (एमबीआर) आधारित तकनीक का विवरण प्रस्तुत किया।उन्होंने कहा कि, इन तकनीकों के माध्यम से अपशिष्ट जल को शुद्ध करके, फैक्ट्रियां प्रसंस्करण के दौरान पानी का पुनः उपयोग कर सकती हैं और इस प्रकार “शून्य ताजे पानी की खपत” के साथ संयंत्र का संचालन सुनिश्चित कर सकती हैं।सुश्री अनुष्का कनोडिया ने वेबिनार का संचालन किया और धन्यवाद ज्ञापन दिया।

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