जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) ने पूरे देश में संपीड़ित बायो-गैस (सीबीजी) और बायो गैस संयंत्रों के पंजीकरण को सुव्यवस्थित करने को लेकर गोबरधन (gobardhan.co.in) के लिए एक एकीकृत पंजीकरण पोर्टल जारी किया है। गोबरधन के लिए नोडल विभाग के रूप में डीडीडब्ल्यूएस ने घोषणा की कि अब तक 1163 से अधिक बायोगैस संयंत्र और 426 सीबीजी संयंत्रों को सफलतापूर्वक पोर्टल पर पंजीकृत किया जा चुका है। ये पंजीकृत सीबीजी/बायोगैस संयंत्र रसायन और उर्वरक मंत्रालय के उर्वरक विभाग की बाजार विकास सहायता (एमडीए) योजना के तहत लाभ प्राप्त करने के पात्र हैं।
दिशानिर्देशों के अनुसार गोबरधन पहल के तहत बीजी/सीबीजी संयंत्रों में उत्पादित किण्वित कार्बनिक खाद (एफओएम)/तरल किण्वित कार्बनिक खाद (एलएफओएम)/फॉस्फेट युक्त कार्बनिक खाद (पीआरओएम) की बिक्री के लिए 1500 रुपये प्रति मीट्रिक टन की सहायता (एमडीए) दी जाएगी। एमडीए पात्रता के लिए डीडीडब्ल्यूएस के एकीकृत गोबरधन पोर्टल पर विनिर्माण संयंत्रों का पंजीकरण और जैविक उर्वरकों के लिए उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) विनिर्देशों का अनुपालन करना पूर्व-शर्तें हैं।
गोबरधन के लिए एकीकृत पंजीकरण पोर्टल के तहत पंजीकृत विनिर्माण इकाइयां उर्वरक विपणन कंपनियों के जरिए पैक्ड फॉर्म (बंद रूप) में या स्वतंत्र रूप से पैक्ड फॉर्म, थोक या दोनों में एफओएम/एलएफओएम/पीआरओएम (सीबीजी/बायोगैस संयंत्रों के सह-उत्पाद) का विपणन कर सकती हैं। विनिर्माण संयंत्रों को प्रायोगिक तौर पर दो तिमाहियों (अक्टूबर 2023 से मार्च 2024) के लिए थोक/खुले रूप में एफओएम/एलएफओएम/पीआरओएम का विपणन करने की अनुमति है। खाद की गुणवत्ता का परीक्षण सरकार की ओर से अधिसूचित प्रयोगशालाओं/एनएबीएल मान्यता प्राप्त निजी प्रयोगशालाओं में किया जाएगा।
रसायन और उर्वरक मंत्रालय के उर्वरक विभाग ने गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन (गोबरधन) संयंत्रों से जैविक उर्वरकों के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने के लिए केंद्रित दिशानिर्देशों के साथ एमडीए योजना शुरू की है।
एमडीए योजना को तीन वर्षों (वित्तीय वर्ष 2023-24 से वित्तीय वर्ष 2025-26) के लिए 1451.82 करोड़ रुपये के ठोस बजट के साथ शुरू किया गया, जिससे गोबरधन संयंत्रों से उत्पन्न जैविक उर्वरकों के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने के साथ पूरे देश में टिकाऊ/जैविक कृषि की पहलों को बढ़ावा दिया जा सके। इसका उद्देश्य जैविक खाद का बड़े पैमाने पर उपयोग करना है, जिससे रासायनिक उर्वरकों/यूरिया पर निर्भरता को कम किया जा सके और ग्रामीण परिवारों के लिए बचत हो सके। जैव-घोल में जैविक खेती के तहत रकबा बढ़ाने और इसके परिणामस्वरूप किसानों को मौद्रिक लाभ प्रदान करने की क्षमता है। एमडीए घटक भी बराबरी स्थापित करने वाला एक कारक है, जो यह सुनिश्चित करता है कि जैविक उर्वरक उत्पादक और किसान के बीच कोई भेद-भाव न हो। यह रासायनिक उर्वरक के काफी अधिक उपयोग को नियंत्रित करते हुए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन को बढ़ावा देता है।
सीबीजी/बायोगैस संयंत्र के मोर्चे पर एमडीए योजना इस क्षेत्र के लिए एक बहुत बड़ा प्रोत्साहक है। जैसा कि भारत आईएनडीसी/जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने और नेट-जीरो प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिए तैयार है, यह योजना सीबीजी संयंत्रों के अच्छी वित्तीय स्थिति की गारंटी देती है, जिससे इसमें निजी निवेश को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता उत्पन्न होती है। सफल एफओएम/एलएफओएम विपणन से बैंकिंग संस्थानों में विश्वास बना रहता है, जिससे ऋण प्रक्रिया सुगम हो जाती है। उद्यमियों व निजी निवेशकों के लिए इस सह-उत्पाद का मुद्रीकरण इन संयंत्रों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता में बढ़ोतरी करता है और वृद्धिशील सीबीजी/बायोगैस क्षेत्र में नए उद्यमियों को आकर्षित करता है।
एक मार्गदर्शक बहु-मंत्रालयी पहल के रूप में गोबरधन का मिशन मवेशियों के गोबर, कृषि अवशेषों व बायोमास सहित जैविक रूप से अपघटित होने वाले और जैविक कचरे को बायोगैस, सीबीजी और जैविक खाद जैसे उच्च मूल्य वाले संसाधनों में रूपांतरित करना है। यह दूरदर्शी “संपूर्ण सरकार” दृष्टिकोण न केवल उच्च मूल्य वाले बायोगैस/सीबीजी उत्पादन के युग की शुरुआत करता है बल्कि, जैव-घोल- एक एफओएम जो मिट्टी के स्वास्थ्य, कार्बन सामग्री और जल धारण क्षमता में संवर्द्धन करने वाला है, की शक्ति का भी उपयोग करता है। जब जैव घोल को रासायनिक उर्वरकों के साथ मिलाकर उपयोग किया जाता है, तो यह विवेकपूर्ण उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देता है, यूरिया आयात को कम करता है और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देता है। आर्थिक दृष्टिकोण से गोबरधन किसानों को जैविक खाद के साथ सशक्त बनाता है, जिससे महंगे रासायनिक उर्वरकों पर उनकी निर्भरता कम होती है।
कई प्रमुख सक्षमकर्ताओं ने गोबरधन पहल को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें जैव-घोल का मानकीकरण, आरबीआई द्वारा कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ) के साथ-साथ पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ) में सीबीजी संयंत्रों को शामिल करना, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा सीबीजी संयंत्र श्रेणियों का फिर से अंशांकन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा फीडस्टॉक प्रकार व अपशिष्ट जल बहाव के आधार पर सीबीजी संयंत्रों के वर्गीकरण में संशोधन और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की अपशिष्ट से ऊर्जा योजना का पुनरुद्धार आदि शामिल हैं। इनमें सबसे हालिया और महत्वपूर्ण सक्षमकर्ता गोबरधन संयंत्रों के तहत उत्पादित जैविक उर्वरकों के लिए एमडीए योजना की शुरूआत है।
सारांश रूप में कहा जाए तो एमडीए योजना की शुरुआत कुशल जैविक अपशिष्ट प्रबंधन और कृषि मृदा में मिट्टी के कार्बनिक तत्वों को बढ़ावा देने, जैविक खेती के लिए उपजाऊ जमीन तैयार करने के दोहरे उद्देश्यों के साथ पूरी तरह से मेल खाता है।
बायोगैस/सीबीजी क्षेत्र में मौजूदा और आगामी नीति प्रवर्तकों के संयोजन के जरिए सरकार की की सोच बायोगैस/सीबीजी संयंत्रों की पहुंच, जागरूकता और कार्यान्वयन का विस्तार करना है, जिससे इस क्षेत्र को निजी क्षेत्र के निवेश के लिए आकर्षक बनाया जा सके।