बेंगलुरु: गुड़ और गुड़-आधारित उत्पादों की बढ़ती मांग, स्वस्थ जीवन शैली के बारे में बढ़ती जागरूकता और व्यापक मिलावट के कारण वाणिज्य और उद्योग विभाग को इस क्षेत्र को विनियमित करने और इसके मानकों को निर्धारित करने पर विचार कर रहा है। इस सेक्टर को ‘उद्योग’ का दर्जा देने के बारे में निर्णय लेने के लिए इस सप्ताह एक राज्य स्तरीय समन्वय समिति की बैठक होगी। गुड़ में चीनी की तुलना में उच्च पोषण मूल्य है, इसकी खपत केवल स्थायी जीवन शैली पर बढ़ते फोकस के साथ ही बढ़ेगी। भारत गुड़ का सबसे बड़ा निर्यातक है, तीसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य होने के नाते कर्नाटक को गुड़ उत्पादन के लाभों को भुनाने की योजना बनाई जा रही है। गुड़ उद्योग को ‘उद्योग’ का टैग निश्चित रूप से न केवल इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने बल्कि रोजगार पैदा करने में भी एक अहम भूमिका निभाएगा। यह इकाइयों को नियामक नियंत्रण में लाएगा ताकि गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके और मिलावट की जांच की जा सके।
द टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के मुताबिक, वाणिज्य और उद्योग विभाग के सूत्रों ने कहा कि, चीनी मिलों में बड़े पैमाने पर मशीनरी होती है, गुड़ इकाइयां बिना मशीन के पारंपरिक तरीकों से संचालित होती हैं। इस वजह से, हमने इसे उद्योग नहीं माना और नवगठित औद्योगिक नीति 2020-25 के तहत गुड़ इकाइयों को कोई समर्थन नहीं दिया गया। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के कारण गुड़ की खपत में तेजी से वृद्धि हुई है। अब गुड़ निर्माता भी कृषि-उद्योग के रूप में मान्यता की मांग कर रहे है। सरकार के इस कदम ने कर्नाटक के गुड़ निर्माताओं के बीच आशा को फिर से जगाया है, विशेषकर मांड्या में जहां ऐसी इकाइयों की संख्या सबसे अधिक है।
गुड़ मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ मांड्या के अध्यक्ष सोमशंकर गौड़ा ने कहा कि इस फैसले से बंद होने के कगार पर खड़े गुड़ सेक्टर को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।