एथेनॉल को बढ़ावा: Silkworm rearing वेस्ट से bioethanol और biohydrogen का उत्पादन करने के लिए रिसर्च जारी

मैसूर : पर्यावरण-अनुकूल बायोरिफाइनरियों के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए मैसूर में Central Sericultural Research and Training Institute (CSRTI) ने शहतूत के अंकुर (mulberry shoot) और रेशमकीट (silkworm excrement) से बायोएथेनॉल और बायोहाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए एक पायलट स्केल की परियोजना शुरू की है। CSRTI के निदेशक एस. गांधी डोस ने कहा कि, संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम वर्तमान में परियोजना पर काम कर रही है और प्रयोगशाला स्तर के प्रयोगों के परिणामों की प्रतीक्षा की जा रही है।

यह परियोजना अप्रैल 2023 में मैसूरु में CSRTI प्रयोगशालाओं में शुरू हुई और एथेनॉल के उत्पादन पर प्रयोगों ने अच्छे परिणाम दिखाए है। बायोहाइड्रोजन के उत्पादन के संबंध में अध्ययन जारी थे। जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के प्रयासों के तहत पेट्रोल के साथ बायोएथेनॉल के मिश्रण को बढ़ाने की भारत सरकार की योजना के मद्देनजर CSRTI का अध्ययन महत्वपूर्ण है। पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर पिछले कुछ दशकों में खतरनाक स्तर तक बढ़ रहा है और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत में परिवहन और औद्योगिक प्रसंस्करण दोनों के लिए जीवाश्म ईंधन का दहन शामिल है।

द हिन्दू में प्रकाशित खबर के मुताबिक, रेशमकीट पालन (silkworm rearing) के दौरान, लार्वा (larvae) शहतूत की पत्तियों (mulberry leaves) को खा जाते हैं और अंकुर और उसके कूड़े (shoot and its litter) को पीछे छोड़ देते हैं। वर्तमान में, भारत में प्रति वर्ष 10 लाख टन से अधिक शहतूत के अंकुर (10 lakh tonnes of mulberry shoot) और कुछ हजार टन से अधिक रेशमकीट कूड़े (silkworm litter) का उत्पादन होता है। CSRTI के वैज्ञानिक डॉ. येरुवा थिरुपथैया ने कहा, शहतूत के अंकुर और रेशमकीट के कूड़े में 50 प्रतिशत से अधिक सेलूलोज़ होता है, जो बायोरिफाइनरी के उत्पादन के लिए कच्चा माल है। उन्होंने कहा कि 2जी दूसरी पीढ़ी के बायोएथेनॉल और बायोहाइड्रोजन के उत्पादन के लिए रेशमकीट पालन के अपशिष्ट अवशेषों का उपयोग करना एक अच्छा विकल्प है।

बायोएथेनॉल के उत्पादन पर परीक्षण करने के बाद, वैज्ञानिक बायोहाइड्रोजन के उत्पादन के लिए चल रहे परीक्षणों का उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं। डॉ. थिरुपथैया ने कहा, बायोहाइड्रोजन को बायोएथेनॉल की तुलना में अधिक आकर्षक वैकल्पिक नवीकरणीय ईंधन माना जाता है क्योंकि इसके दहन से ग्रीन हाउस गैसों के बजाय पानी उत्पन्न होता है।

यदि रेशमकीट पालन अपशिष्ट से बायोएथेनॉल और बायोहाइड्रोजन का उत्पादन आर्थिक रूप से व्यवहार्य पाया जाता है, तो CSRTI प्रायोगिक आधार पर व्यावसायिक पैमाने पर इसके उत्पादन के लिए उद्योग के साथ सहयोग करने की योजना बना रहा है। CSRTI के वैज्ञानिकों का मानना है कि, प्रौद्योगिकी का उपयोग न केवल बायोएथेनॉल और बायोहाइड्रोजन के उत्पादन के लिए स्टार्टअप द्वारा किया जा सकता है, बल्कि देश में रेशम उत्पादन उद्योग के लिए मूल्य भी जोड़ सकता है।

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