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बेंगलरू: खराब बारिश का दुष्चक्र, चीनी मिलों द्वारा एफआरपी भुगतान में देरी और चीनी की गिरती किमताेंं से चीनी उद्योग परेशान हैं, जिससे गन्ना किसानों को खड़ी फसल की बिक्री में दिक्कत हो रही है। उनकी समस्या में यह है कि, मांड्या जिले में कृष्णराज सागर बांध का पानी महीनों से सिंचाई नहरों में नहीं छोड़ा जा रहा है। खड़ी फसल को बचाने के लिए गन्ना किसानों का संघर्ष करना पड रहा है।
सूखे जैसी स्थिति जो पैदा हुई है, उसके कारण मंड्या जिले में हजारों एकड़ में खड़ी गन्ने की फसल सूख गई है। गन्ना उत्पादक अपनी उपज को गुड़ बनाने वाली इकाइयों को केवल 1,400 से 1,600 रुपये प्रति टन पर बेच रहे हैं। पिछले साल राज्य सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,650 रुपये प्रति टन तय किया था। इस साल बारिश की कमी किसानों को फिर से गहरी मुसीबत में डाल सकती है, जिससे ताजा सामाजिक-आर्थिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। किसान अपनी खड़ी फसल को बचाने की उम्मीद खो रहे हैं।
मंड्या जिले में चीनी की खेती का क्षेत्र इस साल पिछले सीजन की अच्छी बारिश के बाद सबसे अधिक है। अगर सरकारी चीनी मिलों ने गन्ने की पेराई शुरू की तो किसानों को बचाया जा सकता है। गन्ना आपूर्तिकर्ताओं को गुड़ बनाने वाली इकाइयों द्वारा अग्रिम भुगतान दिया जाता है और बाकी का भुगतान लगभग एक महीने के बाद किया जाता है। पांडवपुर और मायसुगर मिलों के बंद होने से किसान भी परेशान हैं। वे कहते हैं, अगर अच्छी बारिश नहीं होती है और अगर हम फसल नहीं काट पाते हैं, तो हमारे पास फसल को आग लगाने के सिवाय अन्य कोई विकल्प नही है।
राज्य सरकार को कुछ राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी चाहिए और सरकारी स्वामित्व वाली चीनी मिलों में गन्ने की पेराई शुरू करनी चाहिए। अगर सरकार चीनी मिलों को फिर से शुरू करने में विफल रही तो हजारों किसान गन्ने के साथ क्या करेंगे, यह बड़ा सवाल बना हुआ है।