सोलापुर: महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के चीनी मिल मालिकों को मानसून में देरी के कारण कई किसानों द्वारा अपने गन्ने की उपज को चारे के रूप में उपयोग करने के बाद आगे एक कठिन पेराई सत्र की आशंका है। पंढरपुर तालुका में श्री पांडुरंग सहकारी चीनी मिल के प्रबंध निदेशक यशवंत कुलकर्णी ने कहा कि, उन्हें अक्टूबर में पेराई सत्र शुरू होने से पहले ही गन्ने के 10-15 प्रतिशत डायवर्सन की आशंका है। चूंकि सोलापुर एक सूखाग्रस्त क्षेत्र है, इसलिए यहां के किसान गन्ने की अधिकता से लेकर कम गन्ने की खेती करते है।
सोलापुर को 38 चीनी मिलें होने का अनूठा गौरव प्राप्त है, जो महाराष्ट्र के किसी भी एक जिले में सबसे अधिक है। औसतन, इस क्षेत्र में गन्ने का क्षेत्रफल 2.5-3 लाख हेक्टेयर है और हर साल लगभग 200 लाख टन गन्ने की पेराई की जाती है। राज्य के अन्य हिस्सों की तरह, इस साल सोलापुर में भी मानसून में देरी हुई। जिले के अधिकांश हिस्सों में जुलाई के दूसरे सप्ताह से ही अच्छी बारिश होने लगी, जिससे किसानों को फसल को चारे में बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसका उपयोग मुख्य रूप से डेयरी उद्योग द्वारा किया जाता है।
कुलकर्णी ने कहा कि, चारे के लिए गन्ने का उपयोग मिलों के लिए बड़ा खतरा है। हमारा अनुमान है कि लगभग 10-15 प्रतिशत गन्ने की फसल को चारे के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। हालांकि, मिल मालिकों का मानना है कि, अगर चालू मानसून सीजन के उत्तरार्ध में बारिश जारी रहती है, तो प्रति एकड़ उपज बढ़ सकती है।वर्तमान में, सोलापुर के कई किसान पेराई सत्र शुरू होने का इंतजार करने के बजाय चारे के रूप में गन्ना बेचने में आर्थिक लाभ पाते हैं।
पंढरपुर तालुका में श्री विट्ठल सहकारी चीनी मिल के निदेशक सचिन पाटिल ने कहा कि, डेयरी किसान गन्ने के चारे के लिए 2,500 रुपये प्रति टन का भुगतान कर रहे है। उन्होंने कहा, बारिश की अनिश्चितता को देखते हुए ज्यादातर किसानों ने पेराई सत्र शुरू होने का इंतजार करने के बजाय यह विकल्प चुना है।पाटिल ने कहा, उनके गांव अंबे में डेयरी किसानों को रोजाना लगभग 100 टन गन्ना बेचा जा रहा है। उन्होंने कहा, इससे निश्चित रूप से आने वाले दिनों में गन्ना उपलब्धता प्रभावित होगी।