पुणे : महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में किसान उचित और पारिश्रमिक मूल्य (एफआरपी) और राज्य सलाहित मूल्य (एसएपी) की समय पर भुगतान की मांग को लेकर मिलों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, जबकि चीनी मिलरों ने दावा किया कि उच्च एफआरपी और एसएपी से गन्ना मूल्य भुगतान बकाया बढ़ जाता है। हालांकि, किसान नेताओं ने इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।महाराष्ट्र के गन्ना किसानों ने मांग की है कि चीनी मिलों को एफआरपी का एकमुश्त भुगतान करना होगा।इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन (ISMA) के अनुसार, गन्ना मूल्य भुगतान बकाया का एक मुख्य कारण केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित उच्च FRP है। मिलर्स ने कहा कि,वह कठिन वित्तीय स्थिति का सामना कर रहे हैं, क्योंकि मिलों द्वारा उत्पन्न राजस्व और चीनी उत्पादन लागत के बीच बड़ा अंतर है।
मिलर्स ने दावा किया कि न्यूनतम बिक्री मूल्य (MSP) फरवरी, 2019 में केवल एक बार 31 रूपयें किलोग्राम तक संशोधित किया गया है। सरकार ने अक्टूबर, 2020 से एफआरपी बढाई लेकिन एमएसपी नहीं। केंद्र ने चालू सीजन के लिए 10 प्रतिशत की मूल रिकवरी के लिए एफआरपी को 285 रूपये प्रति क्विंटल किया है।निति आयोग ने न्यूनतम बिक्री मूल्य में 33-36 प्रति किलो की बढ़ोतरी करने का अनुरोध किया है, जिससे किसानों को समय पर भुगतान मिल सके।उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्य एसएपी घोषित करते हैं। एसएपी आम तौर पर एफआरपी से अधिक होता है।मिलर्स ने कहा कि, यह दोहरी कीमत चीनी अर्थव्यवस्था को बिगाड़ रही है।मिलर्स का कहना है की, एसएपी की प्रणाली को हटा दिया जाना चाहिए।