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2015 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री ने चुनावी सभा में इस मिल को शुरू करने का किया था वादा
छपरा: चीनी मंडी
सारण के करीब बीस हजार परिवारों की नजरे मढ़ौरा चीनी मिल की चिमनी की तरफ लगी हुई है। ये किसान परिवार लगभग बीस वर्षों पूर्व तक खुशहाल थे। इनकी खुशहाली का राज इनके गन्ना की खेती थी। यह इनकी नकदी फसल थी, जो इन्हें संपन्न बनाये हुए थी। मढ़ौरा चीनी मिल बंद होने के बाद इन किसानों की हालत काफी खस्ता हुई हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री ने अपनी चुनावी सभा में इस फैक्ट्री की चिमनी से धुआं उगलवाने का वादा किया था। यहां के बीस हजार से अधिक किसान परिवारों में एक आस जगी थी लेकिन वह वादा भी छलावा साबित हुआ। किसान-मजदूरों का मिल चलने का सपना अबतक पूरा नहीं हुआ।
चीनी मिल 1998 में हो गयी बंद…
मढ़ौरा में कानपुर शुगर वर्क्स ने 1904 में चीनी मिल की स्थापना की थी। यह बिहार की सबसे पुरानी चीनी मिल थी। 1995 से इस चीनी मिल की दुर्गति शुरू हुई और 1998 के आते-आते इसमें पूरी तरह ताला लग गया। मिल बंद होने के साथ मढ़ौरा, अमनौर, तरैया, मशरक, पानापुर, इसुआपुर, मशरक, मकेर, परसा, दरियापुर व बनियापुर प्रखंडों के गांवों में गन्ना की खेती भी बंद हो गयी। इन प्रखंडों के सैकड़ों गांवों के लगभग 20 हजार किसान परिवारों की नकदी फसल छिन गयी। साथ ही करीब दो हजार मजदूरों की नौकरी व दिहाड़ी चली गई। इस मिल के पास किसानों व मजदूरों का करीब 20 करोड़ रुपये अभी भी बकाया है।
2007 में पांच हजार एकड़ में लगे गन्ने को जलाया…
यहां के किसानों को चीनी मिल चालू होने के आश्वासन का खामियाजा भी कम नहीं उठाना पड़ा है। 2007 में बड़े ही तामझाम के साथ चीनी मिल को चालू कराने की कवायद शुरू की गयी। पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के उद्योगपति जवाहर जायसवाल को इस मिल को चलाने के लिए बुलाया गया। फैक्ट्री कैम्पस में बड़ा समारोह आयोजित कर किसानों से गन्ने की खेती शुरू करने का आह्वान किया गया। यहां के किसानों ने भरोसा किया और करीब पांच हजार एकड़ में गन्ने की खेती उन्होंने की। लेकिन मिल नहीं चला और किसानों को अपनी तैयार गन्ने की फसल को खेत में ही जला देना पड़ा।
I want to buy this sugar Mill . With some condition .
What will you do of it afterward… If you have guts in you then go nd persuade the locals.
What’s your conditin