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कासगंज : चीनी मंडी
उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की मुसीबते कम होती नजर नही आ रही है, दिनोंदिन किसानों की हालत बद से बत्तर होती जा रही है। कई जिलों में चीनी मिल होने के बावजूद गन्ना किसान पहले तो उचित दाम के लिए भटकते रहते हैं। पर्चियां न मिलने पर दलालों को औने-पौने दाम में गन्ना बेचने में किसानों को मजबूर होना पड़ता हैं। यदि मिल को गन्ना बेच भी दें तो भुगतान के लिए एक लंबा इंतजार करना पड़ता है। चीनी उद्योग में अब केवल बिचौलियों का ही बोलबाला है।अब भी प्रदेश में गन्ना किसानों का मिलों के पास करोड़ो का बकाया है।
एक किसान को 12 बीघा में की गयी गन्ने की फसल से काफी उम्मीद थी। खेत में सर्वे करने टीम आई तो चार ट्रॉली की पर्ची थमा गई। बाकी चार ट्रॉली सुरेश ने जैसे-तैसे बेचीं, और एक किसान को भी चार बीघा की फसल को 250 रुपये कुंतल की दर से बेचना पड़ा, जबकि मिल में खरीद 315 रुपये तक हो रही थी।मिल में पूरा गन्ना बिकता तो कम से कम आठ हजार रुपये बचते। कासगंज के हर गन्ना किसान का यह दर्द है। कहने को जिले में दशकों पुरानी चीनी मिल है, लेकिन फायदा किसान नहीं, बिचौलिए उठाते हैं।
उत्तर प्रदेश में मिल तो अपने हिसाब से गन्ना खरीद करती है। पर्चियां दो-दो महीने बाद आती हैं। नंबर आने का इंतजार करें तो फिर गेहूं की फसल भी नहीं बो पाते है। ऐसे में मजबूरी में दलालों को ही बेच देते हैं, ताकि आठ-दस दिन में पैसा मिल जाए और कम से कम गेहूं की फसल तो हो जाएगी। बीते वर्षों का भुगतान गन्ना किसानों को इस वर्ष हो सका है। किसानों को कई बार आंदोलन करना पड़ा। योगी सरकार ने किसानों को कई वादे किये, लेकिन फिर भी गन्ना बकाया भुगतान नही हुआ है। सरकार के खोकले वादों से किसान काफी निराश है और इसका परिणाम चुनावों में भी देखा जा सकता है।
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