कोल्हापुर: भाजपा के राज्यसभा सांसद धनंजय महादिक ने कहा कि, चीनी उद्योग ने केंद्र सरकार से बेकरी उत्पादों, शीतल पेय आदि के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से खपत की जाने वाली चीनी की कीमत बढ़ाकर 42 रुपये प्रति किलोग्राम करने की मांग की है। पिछले पांच वर्षों से चीनी का न्यूनतम विक्रय मूल्य (MSP) 31 रुपये प्रति किलोग्राम है। इस बीच, केंद्र सरकार ने हर साल गन्ना किसानों को भुगतान की जाने वाली राशि में वृद्धि की है।
उन्होंने कहा, मिलों को कम मार्जिन पर काम करना पड़ रहा है, क्योंकि उनमें से अधिकांश के पास परिचालन चलाने के लिए फ्लोटिंग कैपिटल नहीं है। उत्पादित चीनी का 75% वाणिज्यिक उद्योगों को बेचा जाता है, जबकि शेष खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से सीधे उपभोग के लिए बेचा जाता है। चीनी की कीमत को संशोधित करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मिलें कर्ज के जाल में न फंसें।
सोलापुर जिले में चीनी मिल चलाने वाले सांसद महाडिक ने कहा, मिलर्स कैंडी, सॉफ्ट ड्रिंक और अन्य संबंधित चीजें बनाने वाली फैक्ट्रियों को बेची जाने वाली चीनी की कीमत बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। महाडिक ने केंद्र सरकार से चीनी मिलों द्वारा खोई से उत्पादित बिजली पर 1 रुपये प्रति यूनिट की सब्सिडी देने की भी मांग की। वर्तमान में, केंद्र 4.65 रुपये प्रति यूनिट की दर से खोई आधारित बिजली खरीदता है।
‘ चीनीमंडी’ से बात करते हुए सांसद धनंजय महाडिक ने कहा की, 2019 से चीनी की MSP में बढ़ोतरी नही हुई, लेकिन FRP में लगातार बढ़ोतरी हुई है। इसके चलते चीनी मिलों को किसानों के गन्ना मूल्य का भुगतान करने के लिए बैंकों से लोन लेना पड़ता है। इसके कारण देश की कई मिलें आर्थिक संकट का सामना कर रही है। अगर हम चीनी की कीमतें घरेलू और औद्योगिक (बेकरी उत्पादों, शीतल पेय आदि) इस्तेमाल के लिए अलग अलग रखते है, तो इससे किसान, आम नागरिक और देश के चीनी उद्योग को फायदा होगा।
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