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नई दिल्ली : चीनीमंडी
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार जीत के बाद भारत की चीनी उद्योग को आगे भी सरकारी समर्थन जारी रहने की उम्मीद है। इससे न्यूयॉर्क कच्ची चीनी वायदा बाजार पर और दबाव पड़ सकता है, जो पहले से ही लगभग सात महीनों के सबसे निचले स्तर पर है। अपने पहले पांच साल के कार्यकाल में, मोदी सरकार ने चीनी मिलों को न्यूनतम बिक्री मूल्य बढ़ाने और इथेनॉल निर्माताओं को क्षमता बढ़ाने के लिए रियायती ऋण प्रदान करने के अलावा मिलों, किसानों और निर्यातकों को सैकड़ों मिलियन डॉलर की सब्सिडी प्रदान की थी।
सरकार द्वारा चीनी उद्योग की सहायता के लिए हर मुमकिन कोशिश की गई थी। जिसके कारण दुनिया के अन्य उत्पादकों जैसे कि ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और ग्वाटेमाला ने पहले ही विश्व व्यापार संगठन को भारतीय सब्सिडी के खिलाफ शिकायतें की हैं, थाईलैंड और कनाडा ने भी विरोध व्यक्त किया है। नेशनल फेडरेशन ऑफ कोआपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा, अगले साल हमारे लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि हमारे पास रिकॉर्ड ओपनिंग अधिशेष होने जा रहा हैं।
नाइकनवरे ने कहा कि, मोदी का दूसरा पांच साल का कार्यकाल सरकारी सहायता के साथ मिलों को चीनी निर्यात जारी रखने के लिए सुनिश्चित करेगा। उन्होंने कहा कि, देश के 5 करोड़ गन्ना किसानों के लिए गारंटीकृत कीमतों की नीति और चीनी मिलों से बंदरगाह तक परिवहन के लिए वित्तीय मदद आने वाले वर्षों में बने रहने की उम्मीद है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के अनुसार 2018-19 में चीनी का उत्पादन रिकॉर्ड 330 लाख टन तक पहुंच सकता है। भारतीय चीनी उत्पादन 2019-20 में तीसरे वर्ष के लिए खपत से अधिक होने की संभावना है।