कानपुर: “शर्करा एवं अन्य स्वीटनर की गुणवत्ता और उपभोग के स्वरूप” विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन राष्ट्रीय शर्करा संस्थान-कानपुर, नेशनल शुगर डेवलपमेंट काउंसिल-नाइजीरिया एवं एस्युट यूनिवर्सिटी-मिस्र के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया जिसमे भारत, सुडान, मिस्र, नाइजीरिया, श्रीलंका, सऊदी अरब, केन्या और नेपाल के 600 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का प्रारम्भ करते हुये राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने अपने सम्बोधन मे प्रतिनिधियों का आह्वान करते हुये कहा कि उन्हे चीनी के उत्पादन मे उपभोक्ता की आवश्यकताओं एवं स्वाद को ध्यान मे रखना चाहिए। अतः उपभोक्ता के मांग के अनुसार आर्गेनिक शुगर, फार्मास्युटिकल शुगर, लिक्विड शुगर, ब्राउन शुगर एवं अन्य विशिष्ट चीनियों का उत्पादन किया जाना चाहिए जिनका बाजार नियमित रूप से विकसित होता जा रहा है। उन्होने “प्राकृतिक, कार्बनिक एवं पोषक तत्वों से भरपूर (Natural, Organic & Nutritive – NON) शर्करा तथा स्वीटनर के उत्पादन एवं कोविड-19 को ध्यान मे रखते हुये उपभोक्ताओं के लिए उनके स्वच्छ पैकेजिंग के माध्यम से चीनी के वितरण पर ज़ोर दिया।
अपने व्याख्यान के दौरान नेशनल शुगर डेवलपमेंट काउंसिल, नाइजीरिया के निदेशक मि. हेजेकियः कोलओले ने नाइजीरिया के शर्करा-परिदृश्य पर ध्यान आकृष्ट करते हुये कहा कि नाइजीरिया मे मांग के अनुरूप चीनी का उत्पादन नहीं होने के कारण नाइजीरिया को 97% शर्करा का आयात करना पड़ता है। उन्होने बताया कि औद्योगिक इकाइयों मे चीनी की खपत का 50% शीतल पेय इकाइयों मे उपयोग किया जाता है। नाइजीरिया मे प्रतिव्यक्ति चीनी का खपत 9 किलोग्राम प्रतिवर्ष है जो भविष्य मे 15 किलोग्राम तक बढ़ सकती है। नाइजीरिया के चीनी उपभोग के मास्टर प्लान के अनुसार नाइजीरिया को चीनी उत्पादन के क्षेत्र मे आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ लगभग एक लाख रोजगार के अवसर तैयार किया जाना है। साथ ही 400 मेगावाट क्षमता का ऊर्जा का उत्पादन भी किया जाना है। फलतः नाइजीरिया मे स्थापित होने वाले कारखानों के लिए भारतीय कंपनियों के लिए आवश्यक संयंत्र एवं मशीनों की आपूर्ति के लिए व्यापक अवसर प्राप्त होंगे।
सऊदी अरब के यूनाइटेड शुगर कॉर्पोरेशन के अधिशासी प्लांट निदेशक मि. अहमद वावड़ा ने अपने सम्बोधन मे विभिन्न प्रकार के स्वीटनर यथा – शुगर अल्कोहल, जीरो कैलोरी के स्वीटनर एवं कृत्रिम स्वीटनर आदि के बारे बताया। उन्होने यह भी कहा कि उपभोक्ताओं मे इनकी मांग बढ़ने का कारण केवल निम्न या शून्य कैलोरी का होना नहीं है अपितु इनका मूल्य भी चीनी के मूल्य का 10% से भी कम होना है। उन्होने इस अवसर पर प्राकृतिक स्वीटनर यथा मेपल सीरप, स्वीट सोरघम सीरप और शहद के बारे विस्तार से बताया। मि. वावड़ा ने एस्पारटेम एवं सुक्रालोज जैसे कृत्रिम स्वीटनर के बारे भी बताया जिनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स शून्य होता है जिसके कारण इसको मधुमेह के रोगी भी खा सकते हैं तथा उनका दांतों पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। तथापि ऐसे स्वीटनर के उपभोग से होने वाले किसी अन्य नुकसान का व्यापक अध्ययन किया जाना अभी शेष है।
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के शर्करा प्रौद्योगिकी के सहायक आचार्य श्री अशोक गर्ग ने भारत मे चीनी उपभोग-परिदृश्य के सर्वेक्षण का विस्तृत ब्योरा प्रस्तुत किया। उन्होने कहा कि विश्व भर मे विभिन्न संस्थानों द्वारा शर्करा उपभोग पर दिये जाने वाले चिकित्सकीय सलाह को ध्यान मे रखते हुये चीनी कारखानों को उन प्रक्रियाओं के विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिनके माध्यम से चीनी मे आवश्यक प्राकृतिक अवयव यथा विटामिन, मिनरल एवं ग्लूकोज आदि से समृद्ध चीनी को न्यूनतम रसायनों के माध्यम से तैयार किया जा सके। उन्होने इस अवसर पर संस्थान द्वारा विकसित उन प्रक्रियाओं का विवरण भी दिया जिनके माध्यम से इच्छित गुणवत्ता की चीनी को तैयार की जा सकती है। साथ ही साथ उन्होने कहा कि हमे फोर्टिफाइड चीनी के उत्पादन पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि आम लोगों मे कई विटामिन तथा मिनरल का अभाव पाया जाता है।
शुगर एंड इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रीज टेक्नोलोजी, मिस्र के सह संकाय अध्यक्ष डॉ. सलाह एफ़. अबाउ एलवफा ने मिस्र मे चीनी उत्पादन एवं उपभोग आवश्यकताओं का विवरण देते हुये कहा कि उनके देश मे चुकंदर एवं गन्ने दोनों से चीनी का उत्पादन किया जाता है बावजूद इसके आवश्यक उपभोग का 1/3 हिस्सा बाहर से आयात करना पड़ता है। इस दौरान उन्होने विभिन्न देशों मे चुकंदर, गन्ना तथा चीनी के तुलनात्मक उत्पादन एवं दक्षता का विवरण देते हुये चीनी कारखानों को नवीनतम प्रौद्योगिकी के विकास के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाने के लिए आह्वान किया। इसके साथ ही उन्होने इस प्रकार के आयोजनों पर भी बल दिया जिससे चीनी प्रसंस्करण के क्षेत्र मे नवीनतम तकनीकी विकास की जानकारी साझा की जा सके।
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