कानपुर: राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर मे आज दिनांक 2 जुलाई, 2020 को “गन्ने की खोई का वैकल्पिक उपयोग” विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ करते हुये डी सी एम श्रीराम लिमिटेड के निदेशक सह मुख्य कार्यपालक अधिकारी (शर्करा) श्री आर एल तमक ने अपने सम्बोधन मे विश्व भर के शर्करा कारखानों को गन्ने की खोई से मूल्यवर्धित उत्पाद की प्राप्ति के क्षेत्र मे इनोवेशन के लिए आह्वान किया। उन्होने कहा कि गन्ने की खोई का उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जाना बहुत से देशों मे व्यावहारिक नहीं है तथा खोई का उचित निपटान एक समस्या बनती जा रही है। संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने अपने मुख्य सम्बोधन मे यह बताया कि गन्ने की खोई के अवयवों को देखते हुये इसका उपयोग 2-G ईथनोल के उत्पादन एवं अन्य जैव-उत्पादों मे किया जा सकता है। उन्होने इस बात पर बल दिया कि गन्ने की खोई का उपयोग जैव-ईंधन, जैव-पदार्थ एवं जैव-रसायन जैसे विविध उपयोगी पदार्थों के उत्पादन मे किया जा सकता है। गन्ने की खोई के द्वारा इस प्रकार के उत्पादों का उपयोग वित्त-सुलभ होने के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल एवं स्वास्थ्यवर्धक भी साबित हो सकता है।
संस्थान के शर्करा अभियांत्रिकी के सहायक आचार्य श्री विनय कुमार ने अपने सम्बोधन के दौरान फर्नीचर निर्माण मे उपयोगी पार्टिकल बोर्ड, लेमिनेशन बोर्ड जैसे उपयोगी उत्पादों पर अपनी प्रस्तुति दी। अध्ययन मे यह पाया गया है कि यूकेलिप्टस अथवा पाईन से निर्मित पैनल की तुलना मे गन्ने की खोई से निर्मित पैनल बेहतर भौतिक एवं यांत्रिक गुणों को प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार गन्ने की खोई से निर्मित पार्टिकल बोर्ड तथा पैनल, लकड़ी की खपत को कम करते हुये वनों पर पड़ने वाले अनावश्यक दबाव को कम कर सकते हैं। उन्होने इस संबंध मे यह भी कहा कि गन्ने की खोई को उच्च ताप एवं दाब पर निर्धारित आकार मे ढ़ालकर पर्यावरण अनुकूल क्रॉकरी (बर्तन) का निर्माण भी किया जा सकता है। इस प्रकार के क्रॉकरी थर्मोकोल व प्लास्टिक की बनी सिंगल यूज क्रॉकरी का विकल्प है।
कार्बनिक रसायन के सहायक आचार्य डॉ. विष्णु प्रभाकर श्रीवास्तव ने गन्ने की खोई तथा अन्य अपशिष्ट से जैव-प्लास्टिक के निर्माण की प्रक्रिया का विवरण देते हुये कहा कि Non-biodegradable plastic के निरंतर बढ़ते उपयोग ने पर्यावरण के साथ-साथ जैव-विविधता पर काफी गहरा दुष्प्रभाव डाला है।ऐसी परिस्थिति मे पेट्रोलियम आधारित पॉलीमर के स्थान पर गन्ने की खोई, प्लास्टिक निर्माण की संभावित स्रोत के रूप मे उभर सकती है। Biodegradableplasticकी बाजार, जो 2016 मे 17.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी वह 2022 तक 35.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की संभावना है। जैव-रसायन की आचार्या डॉ. (श्रीमती) सीमा परोहा ने अपने प्रेजेंटेशन मे गन्ने की खोई से प्राप्त खाद्य-तंतुओं (फाइबर) के मानवीय आहार मे प्रयोग की विशेषता को बताया। मानवीय स्वास्थ्य से जुड़े इन फाइबर के महत्व को विस्तारपूर्वक समझाते हुये उन्होने कहा कि किस प्रकार ये तन्तु हमारे वजन को कम करने, आंतों की सुरक्षा, पेट के कैंसर एवं पथरी की समस्या से निजात दिलाने मे मदद करते हैं।
अपने समापन व्यक्तव्य मे जे पी मुखर्जी एवं एसोसिएट, पुणे के प्रबंध निदेशक डॉ. एम एस सुंदरम ने शर्करा उद्योग को गन्ने की खोई से निर्मित विविध उत्पादों के लिए शोरूम -स्थापना की सलाह दिया। उन्होने यह भी कहा कि शर्कराउद्योग को ऐसे उत्पादों की आवश्यकता के आंकलन के लिए बाजार की सर्वेक्षण के साथ-साथ इस दिशा मे कार्यान्वयन की उचित दृष्टि विकसित करनी चाहिए।
इस अवसर पर श्रीलंका, नेपाल, केन्या, ब्राज़ील, नाइजीरिया, थाइलैंड एवं इन्डोनेशिया के 800 से अधिक प्रतिनिधि इस वेबिनार मे शामिल हुये।
NSI द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार गन्ने की खोई का वैकल्पिक उपयोग यह न्यूज़ सुनने के लिए प्ले बटन को दबाये.