राष्ट्रीय शर्करा संस्थान को बैगास से एक अन्य मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने मे सफलता प्राप्त हुयी

राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर को बैगास से एक अन्य मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने मे सफलता प्राप्त हुयी है। प्रतिवर्ष भारतीय चीनी उद्योग के द्वारा 80-90 मिलियन मीट्रिक टन बैगास अपशिष्ट के रूप मे निकलता है जिसे मुख्यतः बॉयलर मे ईंधन के रूप मे प्रयोग किया जाता है। इस संदर्भ मे बात करते हुये संस्थान के निदेशक ने कहा कि चीनी उद्योग को आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने के लिए उन्हे केवल चीनी से होने वाली आय पर निर्भर न होकर इनोवेशन के माध्यम से अन्य स्रोतों से इसे आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होने यह भी बताया कि संस्थान के द्वारा गत दो वर्षों से बैगास से मूल्यवर्धित उत्पाद की प्राप्ति के लिए काफी प्रयास किया जा रहा था जिसकी परिणति मिथाइल लेवुलिनेट के रूप मे एक मूल्यवर्धित उत्पाद की प्राप्ति के रूप मे हुई है। इस रसायन को विभिन्न रूपों मे यातायात, चिकित्सा, कृषि एवं खाद्य उद्योगों इत्यादि मे प्रयोग किया जा सकता है। एंटी फ्रीजिंग (ठंड से न जमना) के गुण के कारण इसे ठंडे एवं उच्च पर्वतीय क्षेत्रों मे इसका प्रयोग बायो-डीजल मे मिश्रण करने के लिए भी किया जाता है। इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों मे फ्लेवर के रूप मे प्रयोग के साथ इसे कृषि कार्यों मे कीटनाशक, खर-पतवार नाशक एवं पौधों के उचित विकास के लिए किया जा सकता है।

उन्होने यह भी कहा कि इसे कैंसर मे लोकलाइजिंग एजेंट एवं फोटो डाइनिमिक थेरेपी के अतिरिक्त अन्य उद्योगों मे प्लास्टिसाइजिंग एजेंट के रूप मे भी प्रयोग किया जा सकता है।

इस विषय पर विस्तृत जानकारी प्रदान करते हुये अनुसंधान के दिशानिर्देशक एवं संस्थान के कार्बनिक रसायन अनुभाग के सहायक आचार्य डॉ. विष्णु प्रभाकर श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान मे मिथाइल लेवुलिनेट को लेवुलिनिक एसिड से प्राप्त किया जाता है। लेवुलिनिक एसिड की कीमत लगभग 500-800 प्रतिकिलोग्राम है, जिसके कारण मिथाइल लेवुलिनेट के उत्पादन मे भी उच्च लागत आती है। इस संबंध मे संस्थान के द्वारा कम लागत की ऐसी नवीन तकनीक के विकास के लिए प्रयास किया जाता रहा कि इस रसायन की उत्पादन लागत काफी कम हो एवं बनाने की प्रक्रिया भी जटिल न हो। अतःसंस्थान के द्वारा प्रचुरता से उपलब्ध बैगास को कच्चे-माल के रूप मे इस्तेमाल किया गया, जिसकी कीमत मात्र 2-3 रुपये प्रति किलोग्राम है। उन्होने बताया कि बैगास मे सेलुलोज, हेमी-सेलुलोज एवं लीगनिन नामक अवयव पाये जाते हैं जिनमे केवल सेलुलोज को ही मिथाइल लेवुलिनेट की प्राप्ति मे प्रयोग किया गया है एवं इसके अन्य अवयव अन्य रूप मे प्रयोग किए जा सकते हैं। इस संदर्भ मे अनुसंधान सहायक डॉ. चित्रा यादव एवं अध्येता श्री तुषार मिश्रा ने बताया कि इस रसायन को प्राप्त करने के लिए बैगास मे उपस्थित सेलुलोज की अल्कोहलाइसिस प्रक्रिया, एसिड उत्प्रेरक एवं ऑटोक्लेव परिस्थितियों मे की जाती है। उत्पाद के गुणवत्ता का आकलन मास स्पेक्ट्रोस्कोपी, एन एम आर स्पेक्ट्रोस्कोपी, गैस क्रोमेटोग्राफी, एफ़ टी-आई आर स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं थिन-लेयर क्रोमेटोग्राफी के माध्यम
से किया गया है जिसमे यह पाया गया कि बैगास से मिथाइल लेवुलिनेट की गुणवत्ता बाजार मे उपलब्ध मिथाइल लेवुलिनेट के समतुल्य है।

इस सफलता से उत्साहित संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि मिथाइल लेवुलिनेट की बढ़ती मांग, सस्ते कच्चे माल के रूप मे बैगास की उपलब्धता एवं कच्चे माल से लगभग 5% तक मिथाइल लेवुलिनेट की प्राप्ति को आधार मानते हुये यह कहा जा सकता है कि पर्याप्त मात्रा मे कम लागत के द्वारा मिथाइल लेवुलिनेट को तैयार किया जा सकता है। उन्होने यह भी कहा कि संस्थान के द्वारा जल्द ही एक पेटेंट के लिए आवेदन किया जाएगा एवं अन्य पाइलट प्लांट पर इसकी उत्पादकता तथा उत्पादन लागत के संदर्भ मे व्यापक अध्ययन किया जाएगा।

यह न्यूज़ सुनने के लिए प्ले बटन को दबाये.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here