कानपूर: राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर ने पेट्रोल मे 10% ईथनोल के मिश्रण की आवश्यकता को ध्यान मे रखते हुये, इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए वैकल्पिक फीड-स्टॉक के रूप मे मीठी-चरी (स्वीट सोरघम) पर परीक्षण प्रारम्भ किया है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संस्थान ने भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद के साथ मिलकर मीठी-चरी की नौ प्रजातियों को संस्थान के फार्म मे उगाया है। पेट्रोल मे ईथनोल के 10% मिश्रण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 3500 मिलियन लीटर ईथनोल की आवश्यकता है जबकि वर्तमान मे अपने देश मे उत्पादित ईथनोल से अधिकतम 5% ही ईथनोल का पेट्रोल मे मिश्रण संभव हो पा रहा है। संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि वर्तमान मे ईथनोल उत्पादन के लिए कच्चे-माल के रूप मे शर्करा उद्योग से प्राप्त सह-उत्पाद के रूप मे शीरा (मोलासेस) का उपयोग किया जाता है, जो कि निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने मे पर्याप्त नहीं है। अतः हमे अन्य फीड-स्टॉक से ईथनोल प्राप्ति के लिए ध्यान देना आवश्यक हो गया है जो वर्तमान जरूरतों के अनुरूप स्वच्छ जैव-ईंधन के रूप मे आसानी से प्राप्त किया जा सके तथा इससे वाहनों से उत्सर्जित प्रदूषण की मात्रा कम हो और इस प्रकार बेहतर वायु-गुणवत्ता सूचकांक को भी प्राप्त किया जा सके।
इस संबंध मे संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने कहा कि संस्थान के द्वारा परीक्षण के माध्यम से उत्तर भारत के जलवायु के अनुकूल मीठी-चरी के प्रजाति की पहचान की जा रही है। साथ ही यह भी प्रयास किया जा रहा है कि मीठी-चरी को अंतर-फसल पद्धति के माध्यम से गन्ने के साथ उगाया जा सके तथा इसके माध्यम से किसानों के आय मे बढ़ोत्तरी हो सके। इसके साथ ही उगाई गयी मीठी-चरी से प्राप्त ईथनोल के उत्पादन का आकलन भी किया जा सके। प्रयोगशाला से प्राप्त परीक्षणों के आंकड़ों से उत्साहित होकर संस्थान ने वृहद पैमाने पर इसके क्षमता का आकलन प्रारम्भ किया है। संस्थान के निदेशक ने बताया कि इस परीक्षण प्रक्रिया का एक लाभ यह होगा कि इससे हमे जूस के शोधन, किण्वन तथा आसवन की प्रक्रिया को समझने मे सहजता होगी। संस्थान के फार्म से प्राप्त मीठी-चरी को संस्थान की प्रायोगिक शर्करा प्रयोगशाला मे पेर कर संस्थान की डिस्टलरीज मे ईथनोल बनाने की प्रक्रिया चालू की गयी है। प्रारम्भिक परीक्षणों मे मीठी-चरी मे कुल रस प्रतिशत तथा कुल शर्करा प्रतिशत क्रमशः लगभग 52% एवं 12 % पाया गया है। परीक्षण के दौरान प्रति-टन मीठी-चरी से लगभग 50 लीटर ईथनोल प्राप्त किया जा रहा है। इस उत्पादन को उचित कृषि-पद्धति, पेराई एवं अनुकूल प्रसंस्करण प्रक्रिया के माध्यम से बढ़ाया भी जा सकता है। वर्तमान परीक्षण भविष्य मे सुधारात्मक उपायों को अपनाने एवं इस प्रक्रिया की मानकीकरण मे सहयोग प्रदान करेगा। इस संबंध मे कृषि-रसायन के सहायक आचार्य डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि हमे मीठी-चरी के रस से ईथनोल के अतिरिक्त अन्य लाभकारी मूल्यवर्धित उत्पादों के विकास पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे हम मीठी-चरी को लाभप्रद फसल मे विकसित कर सकें।
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