सरकार को गन्ने की कीमत तय करने से रोकने की जरूरत और मिलों और किसानों के बीच ‘राजस्व साझा प्रणाली’ का स्विकार करना चाहिए
नई दिल्ली : चीनी मंडी
भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन (इस्मा)के डायरेक्टर जनरल अबीनाश वर्मा ने बुधवार को कहा कि, भारत के चीनी क्षेत्र में सुधार की जरुरत है, क्योंकि चीनी का पर्याप्त स्टॉक और उच्च गन्ना कीमतों ने सरकार, किसान और चीनी उद्योग को परेशानी में धकेल दिया है । वर्मा ने कहा कि, पिछले सीजन के अतिरिक्त चीनी के साथ इस साल 32.5 मिलियन टन से उत्पादन में अपेक्षित गिरावट के बावजूद 31.5 मिलियन टन चीनी उत्पादन होने की उम्मीद है।
किसानों के लिए गन्ने की फसल अधिक आकर्षक…
वर्मा ने अंतर्राष्ट्रीय चीनी संगठन द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि, भारतीय घरेलू बाज़ार में चीनी की अनुमानित खपत 26 मिलियन टन है और साथ में 5 मिलियन टन का निर्यात लक्ष्य रखा है, जिससे देश में अधिशेष चीनी 10.7 मिलियन टन से 11.2 मिलियन टन होने की सम्भावना है। उन्होंने कहा, हम लगभग 4.5 मिलियन टन अतिरिक्त चीनी के साथ आगे बढ़ेंगे। इसके चलते वर्ष 2019-2020 में भी भारत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी निर्यात करेगा, भले ही भारत में अन्य मुद्दों के कारण कम चीनी उत्पादन की बात हो। वर्मा ने कहा कि, भारत की सरकार न्यूनतम कीमत निर्धारित करती है कि, मिलों को एक स्तर पर गन्ने के लिए भुगतान करती है, जो कि किसानों के लिए कई अन्य फसलों की तुलना में गन्ने की फसल को अधिक आकर्षक बनाता है।
अन्य देशों की तुलना में भारत में किसानों को उच्चतम गन्ना कीमत
वर्मा ने कहा कि, 2017/18 सीज़न में भारत में गन्ने की औसत कीमत (ऑस्ट्रेलिया में 24.06 डॉलर, ब्राजील में 25.11 डॉलर और थाईलैंड में 27.45 डॉलर) 42.30 डॉलर प्रति टन थी। उन्होंने कहा, दुनिया भर के सभी बड़े चीनी उत्पादकों में से, भारत किसानों को उच्चतम चीनी गन्ना कीमत चुका रहा है। वर्मा ने कहा कि, भारत सरकार को गन्ने की कीमत तय करने से रोकने की जरूरत है और देश को मिलों और किसानों के बीच राजस्व साझा करने जैसी प्रणाली का स्विकार करना चाहिए, अन्यथा अधिशेष गन्ना और अधिशेष चीनी की समस्या जारी रहेगी। भारत में चीनी सुधार केवल एक आवश्यकता नहीं है, यह एक जरूरी जरूरत है, यह लगभग एक बाध्यता है। हमें आगे बढ़ने की जरूरत है।