13 दिसम्बर, नई दिल्ली: बे ऑफ़ बंगाल की खाड़ी में स्थित दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशियाई देश यानि बिम्सटेक संगठन एशिया महाद्वीप में तरक्की करने वाले नए उभरते देशों की श्रेणी में शामिल होता जा रहा है। इसके 7 सदस्यों में से 5 दक्षिण एशिया से हैं, जिनमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं तथा दो- म्याँमार और थाईलैंड दक्षिण-पूर्व एशिया से हैं।
राजधानी दिल्ली में बिन्सटेक देशों के कृषि सम्मलेन की शुरुआत हुई। तीन दिवसीय इस सम्मेलन में बिम्सटेक के सभी सात सदस्य देशों के कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञो ने भाग लिया। सम्मेलन के दौरान मीडिया से बात करते हुए बिम्सटेक सचिवाल के निदेशक डॉ आमे सोये ने कहा कि भारत में गन्ने की बम्पर खेती होती है। यहाँ से उत्पादित चीनी के व्यापार और कारोबार को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। सोये ने कहा कि भारत और थाइलैंड जैसे देशों में गन्ना काफ़ी होता है। इन सदस्य देशों के बीच चीनी के व्यापार और कारोबार को हम लोग बढ़ाएंगे तो अच्छा होगा।
डॉ सोये ने कहा कि एशियाई देश पूरी दुनिया का 40 फ़ीसदी चीनी उत्पादन करते है। इनमें चीन, भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अलावा दक्षिण पूर्व एशियाई देश थाइलैंड, इंडोनेशिया, फ़िलीपींस, वियतनाम और म्यांमार शामिल है। 2030 तक भारत ने 35 मिलियन टन चीनी उत्पादन का लक्ष्य रखा है। ऐसे में भारत को इतनी बड़ी मात्रा में चीनी निर्यात के लिए बिम्सटेक देशों में जहां गन्ना कम उत्पादित होता है और चीनी की माँग ज़्यादा है वहाँ निर्यात करने की योजना पर काम करना चाहिए ताकि भविष्य में व्यापक स्तर पर ट्रेड को बढ़ावा दिया जा सके।
श्रीलंका से आए कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शैल्वराजा ने कहा कि श्रीलंका में गन्ने की खेती होती है लेकिन यहाँ गन्ना उत्पादन से ज़्यादा चीनी की घरेलू माँग रहती है। श्रीलंका में 2020 तक अनुमानित एक मिलियन मीट्रिक टन चीनी की माँग होगी जबकि घरेलू चीनी उत्पादन से यहां मात्र 7 फ़ीसदी माँग पूरी हो रही है। बाक़ी 90 फ़ीसदी से ज़्यादा माँग चीनी आयात के ज़रिए ही पूरी होती है। ऐसे में बिम्सटेक के सदस्य देशों में आपस में ही इस तरह चीनी का कारोबार होगा तो सदस्य देशों के बीच रिश्ते और प्रगाढ़ होंगे।
सम्मेलन में भाग लेने आये नेपाल के कृषि मंत्रालय के अधिकारी रामकृष्ण श्रेष्ठा ने कहा कि पिछले साल 30-31 अगस्त को नेपाल में आयोजित हुए बिम्सटेक के चौथे शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच कृषि क्षेत्र में निर्बांध व्यापार और कारोबार को बढ़ावा देने के लिए आपसी सहमति बनी थी, जिसके तहत सभी सदस्य देशों को आपस में व्यापार और कारोबार के लिए वचनबद्दता भी दोहरायी थी। आज ज़रूरत है आपसी समझ के साथ व्यापारिक रिश्तों को न केवल आगे बढ़ाने की बल्कि विश्वास बहाली के साथ सामरिक संबंधों को मज़बूती प्रदान कराने की।
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