लखनऊ : कसावा (Cassava) से एथेनॉल के उत्पादन के लिए National Sugar Institute (NSI), Kanpur और ICAR-Central Tuber Crop Research Institute (ICAR-CTCRI) मिलकर काम करेंगे। दोनों संस्थानों के निदेशकों और विशेषज्ञों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस मामले पर चर्चा की। पेट्रोल में एथेनॉल समिश्रण को बढ़ावा देने के लिए गन्ना और अनाज के अलावा अन्य फ़ीड स्टॉक विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है। NSI के निदेशक नरेंद्र मोहन ने कहा, चीनी उद्योग की कुछ सीमाएं हैं और एथेनॉल के लिए चीनी का डायवर्जन हमेशा चीनी की कीमतों पर निर्भर करता है। यदि चीनी की कीमतें बढ़ती हैं, तो चीनी मिलें एथेनॉल को नजरअंदाज कर सकती हैं, जिससे एथेनॉल आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की भी संभावना है।
ICAR-Central Tuber Crop Research Institute की निदेशक डॉ. एम.एन. शीला ने कहा, वर्तमान में कसावा प्रमुख रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर पूर्व राज्यों में उगाया जाता है और इसका उपयोग मुख्य भोजन के रूप में या स्टार्च और साबूदाना के उत्पादन के लिए किया जाता है। इसमें उत्कृष्ट स्टार्च सामग्री है और इस प्रकार यह एथेनॉल के उत्पादन के लिए संभावित स्रोत हो सकता है। उन्होंने कहा कि, कसावा की प्रति हेक्टेयर उपज भारत में सबसे अधिक है और ऐसी कई किस्में हैं जो मानव उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं हैं, लेकिन स्टार्च सामग्री के कारण एथेनॉल उत्पादन के लिए उपयोग किया जा सकता है।नरेंद्र मोहन ने कहा कि दोनों संस्थान संयुक्त रूप से कसावा स्टार्च, कसावा आटा और कसावा जड़ों से इथेनॉल की उपज का आकलन करने के लिए राष्ट्रीय चीनी संस्थान, कानपुर में पायलट प्लांट स्केल पर परीक्षण करेंगे।