कानपूर: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राकेश भटनागर ने आज राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर का भ्रमण किया, विदित हो कि उन्होने सत्तर की दशक मे राष्ट्रीय शर्करा संस्थान से ही जैव-रसायन विषय मे अपनी पीएचडी की डिग्री प्राप्त की थी। उन्होने अपने भ्रमण के दौरान संस्थान के अनुसंधान प्रयोगशालाओं का अवलोकन किया। जिसमे उन्होने जैव रसायन, कार्बनिक रसायन, कृषि रसायन और शर्करा प्रौद्योगिकी अनुभाग के प्रयोगशालाओं मे हाल ही मे विकसित अत्याधुनिक अनुसंधानों मे काफी गहरी रुचि दर्शाई; विशेषकर बगास (गन्ने की खोई) से डाइटरी-फाइबर, अल्काइल-लेवुलिनेट्स एवं ग्राफ़िन-ऑक्साइड की प्राप्ति से जुड़े अनुसंधान मे उनके द्वारा विशेष ध्यान दिया गया। संस्थान के द्वारा विकसित अन्य तकनीकों के माध्यम से मूल्यवर्धित गुड़, फोर्टीफ़ाइड शुगर एवं तरल गुड़ और डाइटरी-फाइबर से तैयार बेकरी उत्पादों जिनसे “स्टार्ट-अप” अथवा “लघु एवं मध्यम उद्योग” को प्रारम्भ किया जा सकता है, उसमे उन्होने गहरी रुचि दिखाई। उन्होने आशा व्यक्त की कि संस्थान के द्वारा संचालित विभिन्न पाठ्यक्रमों के विद्यार्थी स्टार्ट अप शुरू कर “नौकरी याचक” के स्थान पर “नौकरी प्रदाता” बन सकते हैं।
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान , कानपुर के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने इस अवसर पर संस्थान के द्वारा विकसित विभिन्न प्रौद्योगिकियों के बारे मे विस्तार से बताया, जिसमे शर्करा उद्योग से निकलने वाले अपशिष्ट प्रेस-मॅड के माध्यम से बायो-गैस तैयार करने के विषय मे भी बताया गया। उन्होने कहा कि इस बायो-गैस को खाना बनाने आदि के लिए प्रयोग किया जा सकता है अथवा बायो-गैस को और अधिक शोधन के द्वारा इसे जैव-मिथेन मे बदल कर परिवहन के क्षेत्र मे भी प्रयोग किया जा सकता है। प्रो. नरेंद्र मोहन ने इस दौरान उन्हे संस्थान के “लघु बायो-गैस प्लांट” के मॉडल को भी बताया; जहाँ प्रेस-मॅड के अतिरिक्त रसोई से निकले अपशिष्ट के माध्यम से अथवा कृषि अपशिष्ट के माध्यम से भी बायो-गैस तैयार किया जा सकता है। इस प्रकार के लघु बायो-गैस प्लांट मे 200 किलो अपशिष्ट से लगभग 5 किलो बायो-गैस तैयार किया जा सकता है जो 10 घरों मे रसोई के ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है और इससे LPG की बचत होती है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राकेश भटनागर ने राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के इन प्रयासों की सराहना करते हुये कहा कि उनकी यह हार्दिक इच्छा है कि संस्थान के द्वारा विकसित इन तकनीकों का व्यावसायिक इस्तेमाल हो जैसे; चीनी कारखानों के नजदीक के गावों मे यदि इन कारखानों के द्वारा तैयार बायो-गैस का यदि इस्तेमाल होता है तो इसके काफी बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे।
इस अवसर पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति ने राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के निदेशक से संस्थान के साथ मिलकर नई परियोजनाओं पर काम करने का भी प्रस्ताव दिया जैसे यीस्ट की गुणवत्ता मे सुधार के द्वारा किण्वन प्रक्रिया मे सुधार और इनवर्ट शुगर सीरप तैयार करने के लिए एंजाइम का विकास; जिससे ईथनोल के उत्पादन मे सुधार होगा।