मुंबई/ पुणे : चीनी मंडी
राज्य चीनी आयुक्त शेखर गायकवाड़ द्वारा जारी नए निर्देशों के अनुसार, मिलर्स को, पेराई सत्र की शुरुआत से पहले एफआरपी भुगतान को लेकर व्यक्तिगत किसानों के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर करना होगा। इस पेराई सत्र से, महाराष्ट्र में चीनी मिलें किसानों को उचित और पारिश्रमिक मूल्य (एफआरपी) भुगतान में देरी नहीं कर सकेंगी।
कुछ मिलों ने आम तौर पर, सदस्य किसानों के साथ वार्षिक आम सभा की बैठक के दौरान, यह कहते हुए एक सामान्य समझौते पर हस्ताक्षर करते है की वे किसानों को एफआरपी का एक साथ पूरा भुगतान करने में असमर्थ हो सकते हैं। ऐसे समझौतों ने मिलों को कमिश्नर द्वारा किसी भी संभावित कार्रवाई से बचने में मदद की है। इस बार, सीजन से पहले मिलरों द्वारा इस तरह के कदम की आशंका जताते हुए, चीनी आयुक्त ने स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह के समझौतों को मान्य नहीं माना जाएगा। इसके बजाय मिलर्स को व्यक्तिगत किसानों के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर करने होंगे। अधिकांश मिलों में 30 सितंबर को अपनी आम सभाएं होती हैं। पिछले कुछ सत्रों के दौरान कुछ मिलों ने कार्रवाई से बचने के लिए सीजन के बीच में समझौते किए। गन्ना नियंत्रण अधिनियम के अनुसार, मिलर्स को क्रशिंग / पेराई के बाद 14 दिनों के भीतर एफआरपी भुगतान करना अनिवार्य है, यह विफल होने पर मिलरों को किसानों को देय राशि पर 15% ब्याज देना होता है। गायकवाड़ ने बताया कि, इस तरह के समझौतों के साथ मिलरों को समझौतों में उल्लिखित निर्धारित अवधि तक अनुग्रह अवधि मिलेगी। महाराष्ट्र में चीनी मिलों को नए सत्र के लिए अपने पेराई लाइसेंस इस शर्त के साथ मिलेगी कि, वे गन्ना नियंत्रण आदेश, 1966 के अनुसार 14 दिनों के भीतर किसानों के उचित और पारिश्रमिक मूल्य (एफआरपी) का भुगतान करने के लिए सहमत हैं।
चीनी आयुक्त कार्यालय के अधिकारियों ने बताया कि, महाराष्ट्र चीनी मिल अधिनियम, 1984 के आधार पर मिलों को पेराई लाइसेंस जारी किए जाते हैं। कोई भी मिल बिना लाइसेंस के पेराई शुरू नहीं कर सकता है। हालांकि, आदेश में एफआरपी के संबंध में कोई प्रावधान नहीं है, अधिकारियों ने कहा कि चीनी आयुक्त के पास गन्ना नियंत्रण अधिनियम, 1966 के तहत कुछ विशेष अधिकार हैं, किसानों के लाभ के लिए आयुक्त ने 14 दिनों के भीतर गन्ने के भुगतान के प्रावधान को शामिल करने के लिए अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल किया। गायकवाड़ ने कहा कि आयुक्त पिछले तीन सत्रों से इस प्रथा का पालन कर रहे हैं और कुछ मिलों ने इस मुद्दे पर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, HC ने किसानों के पक्ष में फैसला सुनाया, यही वजह है कि पिछले सीजन में 99% मिलों ने किसानों को 100% एफआरपी का भुगतान किया था।
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