नई दिल्ली : चीनी मंडी
आंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ साथ घरेलू बाजार के भीतर स्टाकिस्ट और थोक उपभोक्ताओं की कमजोर मांग के बीच लगातार छठे सप्ताह में चीनी की कीमतों में दबाव साफ दिखाई दे रहा है। सूत्रों के अनुसार चीनी के बड़े व्यापारियों के साथ ही शीतपेय, कन्फेक्शनरों और आइसक्रीम निर्माताओं जैसे बड़े चीनी उपभोक्ताओं से चीनी की कम मांग ने चीनी की कीमतों पर दबाव डालना जारी रखा है।
आईसीआरए की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2017-18 के विपणन वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) में चीनी उत्पादन 32.25 मिलियन टन के साथ सर्वकालिक रिकॉर्ड तक पहुंचने का अनुमान जताया जा रहा है। 1 अक्टूबर 2018 से शुरू होनेवाले चीनी हंगाम में चीनी उत्पादन में वृद्धि होने का अनुमान है,लेकिन बाजार में चीनी की कम कीमते मिलों के परिचालन मुनाफे को काटने की संभावना है।
रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में गन्ने के रिकॉर्ड उत्पादन के कारण घरेलू चीनी उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। चूंकि उत्पादन खपत से अधिक होने के कारण देश के भीतर चीनी स्टॉक अधिक होने की उम्मीद है। चीनी के बम्पर उत्पादन से चीनी की कीमतों में लगातार गिरावट देखि जा रही है। अक्टूबर 2017 में चीनी की कीमतें 37,000-37,500 रुपये प्रति टन से घटकर दिसंबर 2017 में 34,000 रुपये प्रति टन और फरवरी 2018 के पहले सप्ताह में 31,500 रुपये प्रति टन तक फिसल गईं।
चीनी के दाम में लगातार गिरावट के चलते चीनी उद्योग आर्थिक संकट से घिरा था, इसके चलते सरकार की पहल के बाद चीनी की कीमतें बढ़ीं, जिसमें चीनी शुल्क और चीनी की कीमतों में चीनी की बिक्री पर सीमा लगाए जाने की कीमतें 34,500 रुपये प्रति टन 35,000 रुपये प्रति टन हो रही हैं। हालांकि, आईसीआरए ने कहा, इस साल भी गन्ना और चीनी का बम्पर उत्पादन होने से चीनी की कीमतों पर नया दबाव हो सकता है।
2018 में चीनी कीमतों पर दबाव के साथ-साथ, गन्ना उत्पादन की उच्च लागत (एसएमपी और एफआरपी) के कारण मिलों की मुनाफे में गिरावट आने की संभावना है। हालांकि, महाराष्ट्र और उत्तर कर्नाटक से संबंधित मिलों को उच्च उत्पादन से कुछ लाभ होने की संभावना जताई जा रही है और यूपी में अच्छी फसल और अच्छी रिकवरी से लाभान्वित किया जा सकता है। चीनी उत्पादन के स्तर में वृद्धि और कीमतों में गिरावट को देखते हुए, आनेवाले समय में चीनी उद्योग को सरकारी वित्तीय सहायता मिलनी बहुत ही जरूरी है।