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कानपुर, 31 मई, राष्ट्रीय़ शर्करा संस्थान, कानपुर में आय़ोजित हुए दो दिवसीय “शुगर एक्सपो-2019” का गुरुवार को सुनहरी यादों के साथ समापन हो गया। सम्मेलन के दूसरे दिन गन्ने की खेती, फैक्ट्री में चीनी बनाने की प्रक्रिया, इफ्लुयेंट ट्रीटमेंट के उपयोग आदि विषयों पर अनुसंधान पत्र पढ़े गये। अपने प्रेजेंटेशन में अनिल श्रीवास्तव ने एक नई फिल्ट्रेशन तकनीक का वर्णन किया जिसमें रिफाइंड शुगर के निर्माण के लिये डि-कलराइजेशन प्रक्रिया हेतु पाउडर्ड एक्टिव कार्बन एवं मेंब्रेन फिल्टर तकनीक का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि आयन एक्सचेंज रेजिन के उपयोग द्वारा डि-कलराइजेशन अवांछनीय है क्योंकि इस प्रक्रिया में बहुत अधिक इफ्लुयेंट का उत्पादन होता है और यह पर्यावरण के लिये अनुकूल नहीं है। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के मोहित कुमार ने सेंट्रीफुगेशन द्वारा केन जूस के प्रारंभिक क्लैरीफिकेशन पर अपना अध्ययन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि बेहतर गुणवत्ता की चीनी बनाने में इस तकनीक को अपनाकर रसायन (चूने व सल्फर) के उपयोग को 40 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है और चीनी की उत्पादन लागत घटाई जा सकती है।
“सुपर शार्ट रिटेंशन टाइम क्लेरीफायर” विषय पर संस्थान के आशीष कुमार शुक्ला द्वारा अनुसंधान पत्र प्रस्तुत किया गया। जिसमें परंपरागत क्लेरीफायर के रिटेंशन टाइम 2 से ढाई घंटे की तुलना में सिर्फ 30 मिनट ही होता है। जिससे ऊर्जा की बचत, चीनी के नुकसान एवं रंग का विकास कम होता है एवं कम खर्चे में उत्तम गुणवत्ता की चीनी बनाना संभव है।
अपरान्ह सत्र में इफ्लुयेंट शोधन की विभिन्न तकनीकों पर चर्चा हुई एवं “रीयल टाइम मानीटरिंग एवं इफिसियेंट वाटर मैनेजमेंट” विषय पर संस्थान के ब्रजेश सिंह द्वारा अनुसंधान पत्र प्रस्तुत किया गया। जिसमें बताया गया कि चीनी निर्माण प्रक्रिया में किस प्रकार ताजे पानी के उपयोग को कम करके इफ्लुयेंट के निकास को कम किया जा सकता है। “यूजिंग ग्रीन पावर फ्राम शुगर इंडस्ट्री एवं यूज आफ सोलर इनर्जी फार पावर जनरेशन इन देयर इंडस्ट्री” विषय पर भी पेपर प्रस्तुत किये गये।
गन्ना कृषि सत्र में वैज्ञानिकों द्वारा गन्ने की उत्पादकता बढ़ाने के लिये किये जाने वाले उपायों पर पेपर प्रस्तुत किये गए।
श्रीलंका के शुगरकेन रिसर्च इंस्टीट्यूट, निदेशक प्रो. ए.पी. कीर्तिपाला ने गन्ने की बुवाई से लेकर परिपक्वता उपरांत कटाई तक में कृषि के यंत्रीकरण की पुरजोर वकालत की। उन्होंने सलाह दिया कि भारतीय स्थितियों के लिये उपयुक्त कम लागत वाले हार्वेस्टर्स विकसित किये जायें। वैज्ञानिकों ने गन्ने की अधिक उपज एवं पानी के कम उपयोग के लिये ट्रेंच प्लांटिंग विधि अपनाने की सलाह दी । अन्य फसलों के साथ अंतःफसलों जैसे-दालों, सब्जियों एवं चुकंदर आदि का उत्पादन कर किसानों द्वारा अपनी आय में वृद्धि की जा सकती है। नॉर्थ इंडियन सुगरकेन एडं सुगर टैक्नॉलोजी एसोशियेसन एंव राष्ट्रीय गन्ना संस्थान कानुपर द्वारा आयोजित इस एक्सपो में देश विदेश से आए 200 से भी अधिक प्रगतिशील गन्ना किसानों और चीनी उद्योग से जुडे प्रतिनिधियों ने भाग लिया और बदलते दौर के अनुसार कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने की थीम के तहत गन्ना की खेती करने और चीनी उद्योग में तकनीकी नावाचार अपनाने पर सहमति जताई।