पीलीभीत: पीलीभीत जिले की तीन सहकारी चीनी मिलों पर संकट मंडरा रहा है। एक ओर यहां मझोला मिल भारी घाटे के कारण बंद हो चुकी है वहीं दो अन्य मिलें बीसलपुर और पूरनपुर भी संकट में हैं। ये मिलें भी घाटे में हैं औऱ बंदी की कगार पर हैं। कोष के अभाव में मिलों की मशीनें जर्जर हो चुकी हैं। नतीजन, उनकी पेराई क्षमता कम हो चुकी है। इन मिलों का घाटा साल-दर-साल बढ़ता चला जा रहा है।
बीसलपुर चीनी मिल ने पिछले पेराई सत्र में 80 करोड़ का घाटा दर्शाया जो अबतक के सभी घाटों को मिलाकर तकरीबन छह अरब रुपए तक पहुंच चुकी है।इस को 1975 में एक सहकारी मिल के रुप में शुरु किया गया था। वर्ष 1988 तक मिल मुनाफे में थी। इसे वर्ष 1988 में सर्वाधिक चीनी उत्पादकता का पुरस्कार भी मिला है। वर्ष 2018 में इस मिल ने करीब 34 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई की और तीन लाख सोलह हजार बोरी चीनी का उत्पादन किया। मिल के महाप्रबंधक एसडी सिंह ने बताया कि मिल की मशीनरी काफी पुरानी हो चुकी है, जिसमें पेराई सत्र के दौरान आए दिन तकनीकी खराबियां आती रहती हैं। उन तकनीकी खराबियों को सही कराने में काफी खर्चा आ जाता है। आए दिन तकनीकी खराबी आने के कारण मिल कई कई दिन बंद रहती है, इसके अलावा रिकवरी डाउन रहती है।
पूरनपुर चीनी मिल भी साढ़े पांच अरब घाटे में है। मिल के लगातार घाटे में रहने के कारण इस भविष्य पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। किसानों को इसकी बंदी को लेकर काफी चिंता है। इस चीनी मिल के महाप्रबंधक वीपी पांडे ने बताया कि चीनी मिल करीब साढ़े पांच अरब के घाटे में चल रही है।
मझोला चीनी मिल का घाटा 160 करोड़ रुपए तक पहुंचा। इस भारी घाटे के कारण वर्ष 2009 में इसे बंद कर दिया गया। चीनी मिल के प्रभारी महाप्रबंधक वीपी पांडे ने बताया कि मझोला चीनी मिल को हालांकि सरकार फिर से चलाने के प्रयास कर रही है, लेकिन अब तक इसके आसार नजर नहीं आ रहे।
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