पुणे : चीनी मंडी
कृषि मूल्य आयोग गन्ना दर निर्धारित करते समय क्या गन्ने की उत्पादन लागत ध्यान में रखते है? यदि हां, तो कृषि मूल्य आयोग ने पिछले दो वर्षों में उत्पादन लागत में भारी वृद्धि के बावजूद एफआरपी दर क्यों नहीं बढ़ाई है? यदि चीनी के बाजार मूल्य को देखकर गन्ने की कीमतें तय होती हैं, तो चीनी की दरों में 200 रुपयों के बढ़ोतरी के बावजूद एफआरपी में वृद्धि क्यों नहीं की गई है। इसका खुलासा कृषि मूल्य आयोग के अध्यक्ष द्वारा की जानी चाहिए, यह मांग स्वाभिमानी किसान संगठन के संस्थापक राजू शेट्टी ने की।
केंद्रीय कृषि मूल्य आयोग के अध्यक्ष डॉ. विजय पॉल शर्मा ने वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट (व्हीएसआई) में अगले साल के गन्ने की एफआरपी निर्धारित करने के लिए कृषि नेताओं और चीनी मिलों की एक बैठक बुलाई थी। बैठक में बोलते हुए, राजू शेट्टी ने कहा कि, राज्य में गन्ना किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस समय, शेट्टी ने 10 प्रतिशत रिकवरी के लिए प्रति टन 3400 रुपये की मांग की और अगले हर 1 प्रतिशत रिकवरी के लिए प्रति टन 340 रुपयों की मांग की। शेट्टी ने कहा की, पिछले तीन वर्षों के दौरान, उर्वरकों, दवाओं, कृषि, बिजली दरों और मजदूरी में वृद्धि के कारण गन्ने की उत्पादन लागत में काफी वृद्धि हुई है। गन्ना उत्पादक किसानों को देश में उच्चतम रोजगार और सरकारी कर देनेवाले उद्योग के रूप में जाना जाता है, जिसमें 5 करोड़ से अधिक किसान जुड़े और जिसका सालाना 80 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार होता है। हालांकि, केंद्र सरकार और कृषि मूल्य आयोग की जानबूझकर अवहेलना के कारण, देश में चीनी उद्योग संकट में है।
चीनी की दरों में 200 रुपये की बढ़ोतरी, तो क्यों नहीं बढ़ाया गया गन्ना मूल्य? यह न्यूज़ सुनने के लिए प्ले बटन को दबाये.