चीनी का साल दर साल बढ़ता उत्पादन चीनी मिल प्रबंधन, गन्ना किसान और सरकार के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। राज्य में गन्ने के बढ़ते क्षेत्रफल से सवाल उठने लगा है कि इससे बनने वाली चीनी जब बाजार में मिलों को वाजिब दाम नहीं दिला पा रही है तो फिर इतनी चीनी बनाने का फायदा क्या? ऐसे में देश में गन्ना और चीनी उत्पादन के सबसे अग्रणी राज्य उत्तर प्रदेश में चीनी के बाजार का अंकगणित मिलों के लिए नुकसान का सबब बन गया है।
देश भर की निजी चीनी मिलों के संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में अगले पेराई सत्र 2018-19 के लिए कुल 23.40 लाख हेक्टेयर में गन्ना बोया गया है। पिछले सत्र के लिए 23.30 लाख हेक्टेयर में गन्ना बोया गया था। इस्मा को अगले पेराई सत्र में चीनी का उत्पादन 135 लाख टन के आसपास होने की उम्मीद है।
एक मोटे आकलन के अनुसार प्रदेश में करीब 40-45 लाख टन चीनी की घरेलू खपत होती है। करीब 30 लाख टन निर्यात होती है। हाल ही में खत्म हुए पेराई सत्र 2017-18 में 120.5 लाख टन चीनी यूपी की मिलों ने बनाई थी, जिसमें बीती 30 जून को 55 लाख टन क्लोजिंग स्टाक था। अक्टूबर में अगला पेराई सत्र शुरू होने से पहले के इन तीन महीनों में करीब 15 लाख टन चीनी घरेलू खपत और बाहरी निर्यात में और खप सकती है। करीब 40 लाख टन चीनी के कैरीओवर स्टाक के साथ अगला पेराई सत्र शुरू होने पर तब चीनी के भारी स्टाक को रखने की समस्या खड़ी हो जाएगी।
बाजार के नकारात्मक रुख और अन्य चीनी उत्पादक राज्यों तथा दूसरे देशों में बम्पर उत्पादन की वजह से बाजार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। घरेलू बाजार में चीनी के दाम गिर कर 2500 रुपये कुंतल तक आ गए थे। इससे मिलों की भुगतान क्षमता प्रभावित हुई। नतीजतन, गन्ना किसानों को समय से भुगतान नहीं मिल रहा।
इस्मा ने गन्ना मूल्य को अव्यावहारिक बताया
राज्य मुख्यालय। अगले पेराई सत्र के लिए गन्ने के नए राज्य परामर्शी मूल्य को लेकर गन्ना किसानों के प्रतिनिधियों और चीनी उद्योग के नुमाइंदों के बीच बहस छिड़ गई है। देश में निजी चीनी मिल मालिकों के संगठन इण्डियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने केन्द्र के उचित व लाभकारी मूल्य को अव्यावहारिक करार दिया है। श्री वर्मा का कहना है कि चीनी बाजार के मौजूदा और आगामी परिदृश्य को देखते हुए ये बहुत ज्यादा है।