लागत प्रभावी जैविक पृष्ठ संक्रियक को खाद्य उद्योग के लिए उपयोगी संश्लेषित पृष्ठ संक्रियकों को कृषि-औद्योगिक कचरे से ग्रीन सब्सट्रेट का उपयोग करके एक स्वस्थ विकल्प के रूप में उत्पादित किया जा सकता है।
सर्फ़ेक्टेंट ऐसे अणु होते हैं जो तेल और पानी, पानी और तेल, अथवा वायु एवं पानी की सतहों पर फिसलकर एक पायस (इमल्शन) बनाते हैं। पृष्ठ संक्रियक (सर्फ़ेक्टेंट) खाद्य उद्योग में लुब्रिकेंट्स और झाग उत्पन्न करने वाले पदार्थ (फोमर) के रूप में विलयन (बैटर) में वसा को पायसीकृत (इमल्सीफाई) करने, उसकी समयावधि (शेल्फ लाइफ) में सुधार करने, फैलाने वाले एजेंटों के रूप में और नमी बनाए रखने के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। हालाँकि, आहार संबंधी वस्तुओं में संश्लेषित अर्थात कृत्रिम (सिंथेटिक) खाद्य योजकों (फ़ूड एडिटिव्स) और पायसीकारकों (इमल्सीफायरों) के बढे हुए उपयोग से शरीर मदे विद्यमान सूक्ष्मजैविक तन्त्र (माइक्रोबायोम) में असंतुलन, आंत से संबंधित विकार और आंतों की बाधा पारगम्यता प्रभावित होती है, जिससे लाभकारी सूक्ष्मजीवियों (माइक्रोबायोटा) की सांद्रता में गिरावट आती है। इसलिए वैकल्पिक व्यवस्था जरूरी है I
विभिन्न माइक्रोबियल स्रोतों से प्राप्त माइक्रोबियल बायोसर्फैक्टेंट उच्च पायसीकरण, घुलनशीलता, फोमिंग, अवशोषण और अन्य भौतिक विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा वे पीएच, तापमान और लवणता की एक विस्तृत श्रृंखला में बहुत स्थिर हैं, जो उन्हें खाद्य अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त बनाता है। बायोसर्फैक्टेंट पर्यावरण-अनुकूल जैविक अणु (बायोमोलेक्यूल्स) हैं और विषाक्त प्रभाव नहीं डालते हैं; इसलिए, उन्हें मानव उपभोग के लिए सुरक्षित माना जा सकता है।
प्रोफेसर आशीष के मुखर्जी, निदेशक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उच्च अध्ययन संस्थान (इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज इन साइंस एंड टेक्नोलॉजीज –आईएएसएसटी) गुवाहाटी के निदेशक प्रोफेसर आशीष के मुखर्जी तथा इसी संस्थान के प्रोफेसर एम. आर. खान एवं सुश्री अनुश्री रॉय के नेतृत्व में एक शोध समूह ने खाद्य उद्योगों में जैविक पृष्ठ संक्रियकों (बायोसर्फेक्टेंट्स) के अनुप्रयोग का गंभीर रूप से विश्लेषण किया, जिसमें बायोसर्फैक्टेंट्स के बड़े पैमाने पर व्यावसायीकरण में चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया। खाद्य उद्योग में, बेकरी और सलाद ड्रेसिंग के अलावा, मछलियों में प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के लिए सब्जियों से भारी धातु (हैवी मेटल्स) को हटाने के लिए बायोसर्फैक्टेंट का उपयोग किया जा सकता है, जिससे रोगज़नकों के विरुद्ध सुरक्षात्मक प्रभाव मिल सकते हैं। इसके अलावा, इन्हें जल्दी खराब होने से बचाने के लिए खाद्य उत्पादों में प्राकृतिक प्रतिउपचायक (नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट) के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इन शोधकर्ताओं का यह कार्य जर्नल फ़ूड कंट्रोल (एल्सेवियर) में प्रकाशित हुआ है।
यह अध्ययन लागत प्रभावी बायोसर्फैक्टेंट उत्पादन के लिए कृषि-औद्योगिक कचरे से हरे सब्सट्रेट्स का उपयोग करने, आनुवंशिक (जेनेटिक ) इंजीनियरिंग, पुनः संयोजक (रीकम्बिनेंट) डीएनए प्रौद्योगिकियों और उपज में सुधार के लिए नैनो टेक्नोलॉजी का उपयोग करने की खोज करता है। इस अध्ययन में खाद्य समावेशन (फ़ूड इनक्लूजन) के लिए चार्टर अनुमोदन हेतु एक गहन विष विज्ञान अध्ययन (इन-डेप्थ टोक्सिकोलोजिकल स्टडी), खुराक मूल्यांकन (डोज़ असेसमेंट) और अन्य खाद्य घटकों के साथ बायोसर्फैक्टेंट के सहक्रियात्मक प्रभावों (सिनर्जिक इफैक्ट्स) का भी सुझाव दिया गया है। इस संबंध में, शोधकर्ताओं को बायोसर्फैक्टेंट्स के उत्पादन को अधिकतम करने और उनके बाजार स्थान का विस्तार करने के लिए उद्योगपतियों के साथ समन्वयन में सुरक्षा मूल्यांकन (सेफ्टी असेसमेंट) और कम महंगी, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों (स्टेट- ऑफ़- आर्ट टेक्नोलॉजीज) पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
(Source: PIB)