मुंबई : चीनी मंडी
महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में आर्थिक हालात से ‘बीमार’ चीनी मिलों को बेचने की जगह इन इकाइयों को पुनर्जीवित करने और चीनी उद्योग क्षेत्र को मजबूत करने के लिए इन इकाइयों को भाड़े (लीज़) पर देने का फैसला किया है। सरकार को लगता है की, चीनी उद्योग को सवांरने के लिए यह रास्ता कारगर साबित हो सकता है ।
बीमार होने वाली अधिकांश चीनी इकाइयों का महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (एमएससी) या जिला सहकारी ऋण बैंक (डीसीसीबी) से लिया कर्जा बकाया है। सरकार ने अब अपने ऋणों को पुन: स्थापित करने या इन इकाइयों के पुनरुद्धार के लिए आवश्यक धन उपलब्ध कराने के उपायों की शुरुआत की है।
वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि, इसके तहत नाबार्ड और एमएससी बैंक के साथ एक स्वतंत्र योजना तैयार की जा रही है। इससे पहले एमएससी बैंक ने एक बयान जारी करते हुए कहा था कि, बैंक चीनी मिलों से देय राशि वसूलने के लिए चीनी मिलों की बिक्री करने की बजाय लीज़ पर दी जाएंगी । एमएससी बैंक ने ऋण की चुकौती में चूक के बाद प्रदेश की 25 सहकारी चीनी मिलों का कब्जा कर लिया था। जिनके पास एमएससी बैंक के कुल 500 करोड़ रुपये अटके है।
पिछले साल देवेंद्र फडणवीस सरकार ने राज्य चीनी आयुक्त संभाजी कडु-पाटिल के तहत एक समिति गठित की थी। जिसे राज्य की 40 चीनी मिलें जो बंद होने की कगार पर है, उनकी संपत्ति का वित्तीय और तकनीकी मूल्यांकन करने और एक रिपोर्ट जमा करने के लिए कहा गया था।
राज्य सरकार का उद्देश था की, ४० बीमार चीनी मिलों को कब्जे में लेकर उन्हें लीज़ पर चलाना की वित्तीय व्यवहार्यता को जांचना। क्या सरकार बीमार या गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को उस हालात बाहर लाने के लिए कुछ कदम उठा सकती है या नही । समिति को सहकारी चीनी मिलों के कामकाज का मूल्यांकन करने और गुणात्मक सुधार लाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। मिलों के कामकाज का मूल्यांकन करना और सरकारी निधि का गलत इस्तेमाल या दुरुपयोग की जांच करना था और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करना था ।