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मुंबई : चीनी मंडी
एक रिपोर्ट के मुताबिक मुश्किल के दौर से गुजर रहे महाराष्ट्र के चीनी उद्योग को केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लोन और अनुदान सहायता के रूप में लगभग सव्वा तीन हजार करोड़ रूपयें मिलें है। इस पैसो का इस्तेमाल गन्ना किसानों का एफआरपी बकाया भुगतान के लिए किया गया है। महाराष्ट्र सुगर कमिश्नरेट द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, मिलर्स ने आज तक एफआरपी का 96 प्रतिशत भुगतान किया है और राज्य के 58 मिलों को 74 राजस्व और रिकवरी कोड (आरआरसी) के आदेश जारी किए गये हैं। 2018-19 सीजन के दौरान कुल एफआरपी बकाया राशि 23,116.10 करोड़ थी, जिसमें से 22,137.15 करोड़ एफआरपी भुगतान किया गया है। मिलों द्वारा अभी भी लगभग 996.12 करोड़ का भुगतान बकाया है।
केंद्र सरकार द्वारा सॉफ्ट लोन के माद्यम से कुल 2559 करोड़ और चीनी के आरक्षित स्टॉक के लिए 116 करोड़ रूपये दिए गये थे। इसके साथ ही चीनी निर्यात के लिए लगभग 153 करोड़ रुपयों की मदद केंद्र सरकार द्वारा की गई। राज्य सरकार द्वारा उर्जा निर्माण के लिए चीनी मिलों को 823 करोड़ रूपये दियें गयें है। चीनी का रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा उत्पादन और बाजार में कीमतों में गिरावट के चलते सरकार ने 30 लाख टन चीनी का ‘स्टॉक’ बनाने का निर्णय लिया। 1 जुलाई 2018 से 30 जून 2019 के बीच किये गये चीनी स्टॉक के लिए अनुदान सहायता, ढुलाई और इंश्योरेंस के लाभ भी दिए गये थे। दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने घरेलू रिकॉर्ड चीनी उत्पादन को अच्छे दाम मिलें इसलिए 50 लाख टन चीनी निर्यात का लक्ष तय किया था। अभी तक देशभर से 23 लाख टन चीनी की निर्यात हुई है। महाराष्ट्र की मिलों ने अबतक १० लाख टन चीनी निर्यात की है। केंद्र सरकार की चीनी निर्यात नीति से महाराष्ट्र की मिलों को प्रति टन 138.80 रुपयों का अनुदान प्राप्त हुआ है।