नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि, केंद्र सरकार के पास औद्योगिक शराब के उत्पादन पर अधिकार नहीं है और राज्यों के पास इसे विनियमित करने का अधिकार है। शीर्ष अदालत की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने 8:1 के बहुमत से कहा कि मादक शराब पर कानून बनाने के लिए राज्यों की शक्ति नहीं छीनी जा सकती। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, अभय एस ओक, बीवी नागरत्ना, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्ज्वल भुयान, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि, संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 8 में “मादक शराब” शब्द में औद्योगिक शराब शामिल होगी। हालांकि, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने एक अलग और असहमतिपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि, केवल केंद्र के पास ही औद्योगिक शराब को विनियमित करने की विधायी शक्ति होगी।
बहुमत के फैसले ने 1990 के सात न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि, “नशीली शराब” का मतलब केवल पीने योग्य शराब है, और इसलिए, राज्य औद्योगिक शराब पर कर नहीं लगा सकते।उल्लेखनीय है कि औद्योगिक शराब मानव उपभोग के लिए नहीं है। नौ न्यायाधीशों की पीठ को यह तय करना था कि क्या राज्य सरकारों के पास औद्योगिक शराब को विनियमित करने की शक्ति है। मामले में दलीलें संघ सूची की प्रविष्टि 52 के तहत उद्योगों पर कानून बनाने की संघ की शक्ति के दायरे और राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के तहत औद्योगिक शराब पर कानून बनाने की राज्यों की शक्तियों पर केंद्रित थीं। विभिन्न राज्यों ने केंद्र की इस स्थिति को चुनौती दी थी कि औद्योगिक शराब पर उसका विशेष नियंत्रण है।