नई दिल्ली: चीनी मंडी
निति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने शुक्रवार को राज्यों से चीनी, अल्कोहल पेय और पर्यटन क्षेत्रों को नियमों से ‘मुक्त’ करने का आह्वान किया, ताकि देश की ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रैंकिंग में सुधार हो सके। कांत ने कहा कि, पर्यटन, शराब-पेय और चीनी उद्योग रोजगार पैदा करने और भारत के विकास में बढ़ावा देने की क्षमता रखते हैं। कांत चीनी, शराब-पेय और पर्यटन उद्योगों के एक मामले के अध्ययन के आधार पर लॉन्च ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इन इंडिया’ रिपोर्ट पर बोल रहे थे।
पहल इंडिया फाउंडेशन द्वारा की गई रिपोर्ट ‘ए इंटीग्रेटेड वैल्यू चेन अप्रोच फॉर ईज ऑफ डूइंग बिजनेस: ए केस स्टडी ऑफ शुगर, एल्को-बेव एंड टूरिज्म’ ने कहा कि इन तीनों उद्योगों ने मिलकर 2018 में भारत में लगभग 8 करोड़ लोगों को रोजगार दिया है। इसने राज्य की आबकारी प्रथाओं की ओवरहॉलिंग की सिफारिश की है, जिसमें ऑफ़लाइन सिस्टम से ऑनलाइन चलना, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और राज्यों की जीडीपी में सुधार के लिए कई अन्य नीतिगत उपाय शामिल हैं।
कांत ने कहा कि, भारत अगले दो वर्षों में व्यापार रैंकिंग में आसानी से शीर्ष 30 में सुधार करना चाहता है, और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राज्य स्तर पर सुधार की आवश्यकता है। बहुत से निवेश, बहुत सारे निर्णय लेने, भारत में जो कुछ भी होता है वह राज्यों में होता है और इसलिए हमें राज्यों कर कई कानून और नियम आसान और सरल बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, नियमों और विनियमन प्रक्रियाओं के मामले में राज्यों द्वारा भारी मात्रा में नियंत्रण है और वास्तव में कई सेक्टर हैं जो अभी भी ‘इंस्पेक्टर राज’ के साथ काम कर रहे हैं। विश्व बैंक की नवीनतम ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रिपोर्ट में भारत 77 वें स्थान पर है।
चीनी क्षेत्र पर बोलते हुए, उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने चीनी उद्योग का समर्थन करने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। राज्य सरकारों ने भयानक तरीके से चीनी उद्योग के साथ दबंगई की है। कई-कई तरीकों से, वे इसे व्यावसायिक रूप से गैर-व्यवहार्य बना रहे हैं। इसलिए चीनी उद्योग को स्वतंत्रता आवश्यक है। उन्होंने कहा, जब गन्ना उद्योग बढ़ेगा और समृद्ध होगा, तभी भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़ेगी और समृद्ध होगी, तभी किसानों को लाभ होगा और इसलिए बिजिनेस करने में आसानी के लिए बहुत सख़्ती की आवश्यकता नहीं है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि इस क्षेत्र को खुले दिमाग से देखने की जरूरत है। सरकार चीनी मिलों को किसानों से ऊंचे दामों पर गन्ना खरीदने के लिए मजबूर करती है, जिससे भारतीय चीनी निर्यात वैश्विक बाजार में अप्रभावी हो जाता है।
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