स्कूलों में मध्याह्न भोजन में चीनी वाली चीजें देना बंद करें: बाल रोग विशेषज्ञ समूह ने महाराष्ट्र सरकार से किया आग्रह

मुंबई: बाल रोग विशेषज्ञों के एक समूह ने महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिखकर स्कूल के मध्याह्न भोजन में चीनी युक्त खाद्य पदार्थ देना बंद करने का आग्रह किया है। महा अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर को लिखे अपने पत्र में कहा है कि, ऐसे खाद्य पदार्थों के कारण बच्चे मधुमेह और मोटापे के शिकार हो सकते हैं। पत्र में प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना (जिसे पहले मध्याह्न भोजन योजना के नाम से जाना जाता था) के तहत बच्चों को सप्ताह में चार बार चावल का हलवा परोसने के सरकारी जीआर का हवाला दिया गया है।

पत्र में कहा गया है, जीआर में उल्लेख किया गया है कि कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के भोजन में 25 ग्राम चीनी और कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों के भोजन में 45 ग्राम चीनी मिलाई जानी चाहिए। महा पीडियाट्रिक्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. रामगोपाल चेजारा ने पीटीआई को बताया, हमें प्रतिदिन 25 ग्राम चीनी की आवश्यकता होती है। चीनी दो प्रकार की होती है। एक मिलाई जाती है और दूसरी खाद्य पदार्थों में स्वाभाविक रूप से मौजूद होती है। छात्र दिन भर अन्य खाद्य पदार्थ खाते रहते हैं, जिससे उनका चीनी का सेवन बढ़ जाता है।

उन्होंने कहा, इन भोजन में 25 ग्राम और 45 ग्राम चीनी मिलाने से बच्चे मधुमेह और मोटापे के शिकार हो सकते हैं। हमारी टीमें स्कूलों का दौरा कर चुकी हैं। हमने सरकार से अपील की है कि वह ऐसे मीठे खाद्य पदार्थ देना बंद करे। शिवसेना (यूबीटी) के नेता अंबादास दानवे ने भी इस जीआर को लेकर राज्य सरकार की आलोचना की। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि, राज्य सरकार सोचती है कि भावी पीढ़ी अतिरिक्त चीनी पचाने की फैक्ट्री है। विधान परिषद में विपक्ष के नेता दानवे ने कहा कि, केंद्र सरकार एथेनॉल उत्पादन पर प्रतिबंध लगा रही है, जबकि उसी समय स्कूली बच्चों को अतिरिक्त चीनी दी जा रही है।

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