बेलगावी : चीनी मंडी
बेलगावी में एस निजलिंगप्पा चीनी संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि, खेती की लागत को कम करके और उपज में वृद्धि करके किसानों की आय बढ़ाने के लिए गन्ने के बजाय चुकंदर की खेती फायदेमंद है। चुकंदर खेती का उपाय अन्य उद्देश्यों को भी प्राप्त करेगा जैसे कि, पानी का कम से कम उपयोग, चीनी मिलों के क्रशिंग सीजन का विस्तार, और मवेशियों चारा प्रदान करना। केंद्र सरकार द्वारा एस निजलिंगप्पा चीनी संस्थान को अनुसंधान और विस्तार के लिए चुना गया है। संस्थान के निदेशक आर.बी.खंडागवे ने कहा की, पंजाब के कुछ हिस्सों में पहले से ही फसल की व्यापक रूप से खेती की जा रही है, हम चाहते हैं कि कर्नाटक में भी किसान इसे अपनाएं।
खंडागवे के अनुसार, गन्ने की कटाई के एक साल की तुलना में चुकंदर फसल को विकसित होने में केवल पांच महीने का समय लगता है। चुकंदर को गन्ने के अपेक्षाकृत कम पानी की आवश्यकता होती है। यह पशुओं के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और कटाई के बाद खाद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि, इसकी खेती से किसानों को फायदा होगा क्योंकि खेती की लागत गन्ने की तुलना में कम है और चीनी की पैदावार 1-2% अधिक है। चुकंदर को कम पोषक मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।
आमतौर पर, चीनी मिलें साल में कुछ महीने ही गन्ने की पेराई करते हैं। शेष वर्ष, उन्हें अपने स्थायी कर्मचारियों को बिना काम के वेतन का भुगतान करना पड़ता है। राष्ट्रीय वर्षा क्षेत्र प्राधिकरण के सीईओ अशोक दलवई, जो परियोजना का समन्वय कर रहे हैं, उन्होंने कहा, चुकंदर के पल्प से चीनी बनाने के लिए इस समय का उपयोग किया जा सकता है।हम किसानों को चुकंदर किस्मों और खेती के तरीकों से मदद करेंगे। चुकंदर से चीनी का उत्पादन करने के लिए चीनी मिलों को अपनी मशीनरी में मामूली बदलाव करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि, सरकार आवश्यक तकनीकी जानकारी हासिल करने में उनकी मदद करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि, सरकार फसल को लोकप्रिय बनाने के लिए एक विस्तार कार्यक्रम शुरू करेगी।
उन्होंने कहा, “हम वैज्ञानिकों के साथ किसानों के लिए क्षेत्र के दौरे और बातचीत का आयोजन करेंगे ताकि उनकी शंका दूर हो सके। प्राधिकरण ने कर्नाटक में निजलिंगप्पा चीनी संस्थान और महाराष्ट्र में वसंतदादा शुगर संस्थान के साथ समझौता किया है ताकि फसल को लोकप्रिय बनाया जा सके। गुरुवार को बेलगावी में चीनी संस्थान में प्रशिक्षकों, अधिकारियों और किसानों के साथ बातचीत हुई। इसमें कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विभाग के अधिकारियों के वैज्ञानिकों ने भाग लिया।