कानपुर: विटामिन ‘ए’ की कमी भारत सहित दुनियां के अनेक विकासशील देशों में जनमानस के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या है। इसकी कमी बचपन में अंधेपन एवं नवजात शिशुओं की मृत्यु का एक कारण है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि विश्वभर में बीस करोड़ बच्चे विटामिन ‘ए’ की कमी के शिकार हैं। विभिन्न खाद्य पदार्थों को विटामिन ‘ए’ युक्त करके प्रयोग में लाना, विटामिन ‘ए’ की कमी को पूरा करने का एक सुरक्षित सुलभ एवं कम लागत का तरीका है। देश में अभी विटामिन ‘ए’ का मिश्रण (Fortication) नमक, खाद्य तेल एवं दूध इत्यादि में किया जाता है। विश्व के अनेक देशों, विशेषत: लातिनी अमेरिका एंव अफ्रीका के द्वारा चीनी को विटामिन ‘ए’ का एक वाहक चिन्हित किया गया है एवं अनेक देशों यथा कैन्या, नाइजीरिया, ग्वाटेमाला एवं इक्वाडोर इत्यादि में चीनी को विटामिन ‘ए’ युक्त्ा करने का कार्य किया जा रहा है एवं सामान्यत: बड़े पैमाने का इसका उपयोग विटामिन ‘ए’ की कमी दूर करने में किया जाता है। इस विषय पर भारत में भी संभावनाएं तलाशी गई किंतु उसमें एवं अन्य देशों में अपनाई जा रही प्रक्रिया में कई कमियां होने के कारण यह कार्यक्रम आगे तेजी से न बढ़ सका। वर्तमान में अपनाई जा रही प्रक्रिया में थोड़ी सी चीनी और विटामिन ‘ए’ का एक प्रीमिक्स बनाकर, चीनी की कुल मात्रा में उसको मिला दिया जाता है (blending कर दी जाती है)। इस प्रक्रिया में पूरी चीनी में विटामिन ‘ए’ की मात्रा एक सी नहीं हो पाती एंव रखने पर चीनी में विटामिन ‘ए’ की मात्रा तेजी से कम होती है।
संस्थान के निदेशक प्रो. नरेन्द्र मोहन के नेतृत्व में विभिन्न देशों में अपनाई जा रहीं प्रक्रिया का अध्ययन करने के उपरांत एक नई प्रक्रिया का विकास किया गया है जो विटामिन ‘ए’ के चीनी के साथ ‘’को-क्रिस्टलाइजेशन’’ पर आधारित है। इस प्रक्रिया में विटामिन ‘ए’ (retinyl palmitate) की निर्धारित मात्रा को चीनी के सीरप में मिलाकर नियंत्रित अवस्थाओं में गाढ़ा किया जाता है। संतृप्ता बढ़ने पर चीनी के दाने बनते हैं और इसी दौरान विटामिन ‘ए’ चीनी के दानों में समाहित (को-क्रिस्टलाइज) हो जाता है। अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि इस प्रकार बनाई गई चीनी में विटामिन ‘ए’ की मात्रा लगभग एक समान 15.5 – 19.5 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम होती है एवं इसकी शेल्फ लाइफ (सुरक्षित रहने की अवधि) भी लगभग 06 माह हो सकती है। संस्थान के निदेशक प्रो. मोहन ने आगे बताया कि संस्थान इस प्रोजेक्ट पर पिछले तीन वर्षों से कार्य कर रहा था और इसको यह कामयाबी प्रयोगशाला स्तर पर मिली है। संस्थान द्वारा बनाई गई चीनी का परीक्षण वाह्य ऐजेंसियों द्वारा भी किया गया। प्रारम्भिक परीक्षण से अनुमान लगाया गया कि इस प्रकार विटामिन ‘ए’ fortification पर अतिरिक्त व्यय प्रति किलो पर लगभग रूपये 2.5 आएगा।
प्रो. नरेन्द्र मोहन ने आगे बताया कि जहां कम दाम पर एक पोषक उत्पाद सामान्यजन को उपलब्ध होगा वहीं चीनी मिले एक मूल्य बर्धित उत्पाद बनाकर मुनाफा भी कमा सकेंगी। संस्थान द्वारा विकसित तकनीकी का पेटेंट प्राप्त करने हेतु आवेदन भी दाखिल कर दिया गया है।
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