चीनी का कोई भविष्य नहीं है, हम इथेनॉल पर ध्यान केंद्रित करेंगे: देवेंद्र फडणवीस

मुंबई: चीनी मंडी

इथेनॉल उत्पादन गन्ना किसानों के लिए उम्मीद की किरण है, और देवेंद्र फडणवीस सरकार महाराष्ट्र में इथेनॉल उत्पादन पर जोर दे रही है, लेकिन मिलों और रिफाइनरियों ने अभी तक दीर्घकालिक खरीद समझौतों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। राज्य में कई मिलें है, जो कि इथेनॉल उत्पादन में वृद्धि के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा किए जा रहे योजनाओं का फायदा उठा रही है।

वर्ष 2020 में, तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री राम नाइक के कार्यकाल में महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में इथेनॉल पायलट प्रोजेक्ट स्थापित किए गया था, जिसकी सफलता के कारण 2003 में 5 प्रतिशत इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल बेचने का प्रस्ताव आया। 24 जून के एक ट्वीट में, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि, इथेनॉल सम्मिश्रण प्रतिशत वर्तमान में 6.2 प्रतिशत है, जो 2012- 13 से 0.67 प्रतिशत बढ़ा है। मोदी सरकार ने 2022 तक भारत में सभी पेट्रोल और डीजल के लिए 10 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण अनिवार्य का लक्ष्य रखा हैं। इथनॉल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन का कहना है कि, देश को सालाना 329 करोड़ लीटर इथेनॉल की आवश्यकता होती है। वर्तमान में, सबसे अधिक उत्पादन वाला राज्य, महाराष्ट्र, प्रति वर्ष केवल 44 करोड़ लीटर का उत्पादन करता है।

इथेनॉल सीधे तौर से चीनी उद्योग से सम्बंधित है। भारत में, इथेनॉल मुख्य रूप से मोलेसेस के फर्मेंटेशन से बनता है। इस पर हाइलाइट करते हुए, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में इंडिया टुडे (India Today) से बात करते हुए कहा की, उनकी सरकार अगले तीन वर्षों में इथेनॉल उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करेगी। उन्होंने कहा,” चीनी का कोई भविष्य नहीं है, हम इथेनॉल पर ध्यान केंद्रित करेंगे। यह पूरी कृषि अर्थव्यवस्था को बदल सकता है।” महाराष्ट्र के चीनी आयुक्त शेखर गायकवाड़ ने भी सिफारिश की थी कि राज्य सरकार इथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए और बुनियादी ढाँचा विकसित करने के लिए चीनी मिलों को 500 करोड़ रुपये उपलब्ध करवाए। महाराष्ट्र पहले से ही इथेनॉल की राष्ट्रीय मांग का 13 प्रतिशत की आपूर्ति करता है। केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा थी की, भारत में इथेनॉल बाजार 50,000 करोड़ रुपये का है।

इथेनॉल पर राज्य के फोकस करने के पीछे अन्य कारक भी हैं। एक प्रमुख बात यह है कि राज्य की चीनी मिलों का वित्तीय स्वास्थ्य काफ़ी खराब हुआ हैं। इसके चलते पश्चिमी महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले किसान समूहों द्वारा हिंसक आंदोलन किया गया था, क्योंकि मिल मालिकों ने गन्ने के लिए उचित और पारिश्रमिक मूल्य (एफआरपी) का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त की थी। गन्ना नियंत्रण अधिनियम के तहत, मिलों को अपनी उपज खरीदने के 14 दिनों के भीतर किसानों को एफआरपी भुगतान जारी करना अनिवार्य है। लेकिन इस वर्ष मिलों ने बकाया चुकाने में देरी की, सरकार द्वारा उन्हें 11,000 करोड़ रुपये के ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करने के बाद उन्होंने बकाये को चुकाया।

महाराष्ट्र सरकार डिस्टिलरी स्थापित करने के लिए मिलों द्वारा लिए गए ऋण पर छह प्रतिशत ब्याज का भुगतान करेगी। अगर चीनी मिलें इथेनॉल उत्पादन पर जोर देगी, तो उनके आर्थिक स्तिथी में सुधार हो सकता है, जिससे वे गन्ना बकाया चूका सकते है।

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