पुणे: चीनी मंडी
महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ फेडरेशन के अध्यक्ष जयप्रकाश दांडेगांवकर ने कहा, राज्य में चीनी उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था की प्रेरक शक्ति है। राज्य सरकार को चीनी उद्योग हर साल हजारों करोड़ का टैक्स देता है हालांकि, सरकार की नीतियां उद्योग को प्रभावित कर रही हैं और केंद्र और राज्य सरकार को चीनी मिलों के सशक्तीकरण के लिए वित्तीय सहायता देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि, अगर वित्तीय मदद समय पर मुहैया नहीं कराई गई तो चीनी उद्योग प्रभावित हो जाएगा।
दांडेगांवकर ने कहा की, किसी भी उद्योग को सरकार के समर्थन की जरूरत होती है। सहकारी मिल और चीनी उद्योग छह हजार करोड़ का टैक्स अदा करते हैं। चीनी मिलों को छोड़कर देश के ग्रामीण इलाकों में कोई दूसरा उद्योग नहीं है। दांडेगांवकर ने कहा, “चीनी उद्योग को केंद्र और राज्य सरकारों के समर्थन की जरूरत है, जबकि उत्पादन की लागत 34 रुपये है, जबकि चीनी को 31 रुपये में बेचा जा रहा है। चीनी उद्योग में रोजगार की काफी संभावनाएं हैं, जिसे नजरअंदाज किया जा रहा है। वर्तमान में मिलें मुश्किल में है। चीनी उद्योग अत्यधिक उत्पादन, वैश्विक बाजार दरों में गिरावट और सरकारी नीतियों के प्रभाव से प्रभावित हुआ हैं। अब चीनी उद्योग को मजबूत करने के लिए सरकार के मदद की उम्मीद है।”
महाराष्ट्र के पश्चिमी इलाके में तेज बाढ़ और मराठवाडा में सूखे के कारण गन्ना फसल क्षतिग्रस्त हुई थी, और तो और मराठवाडा में सूखे के कारण काफी सारे गन्ने का इस्तेमाल पशु शिविरों में चारे के रूप में किया गया, जिसका सीधा असर पेराई पर दिखाई दे रहा है। गन्ना और श्रमिकों की कमी के कारण तीन मिलों ने पेराई सीजन शुरू करने के बाद केवल कुछ हप्तों में ही पेराई रोक दी है। इस बार महाराष्ट्र में बाढ़ और सूखे के कारण गन्ना उत्पादन पर काफी असर पड़ा है और साथ ही साथ, राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता के कारण गन्ना पेराई सत्र में देरी हुई है। महाराष्ट्र में चीनी मिलों ने राज्य के राज्यपाल बीएस कोश्यारी से अनुमति मिलने के बाद आधिकारिक तौर पर गन्ना पेराई सीजन शुरू कर दिया था। राज्यपाल ने 22 नवंबर को आधिकारिक रूप से सीजन शुरू करने की अनुमति दी थी। देरी से सीजन शुरू होने के कारण चीनी उत्पादन में काफी गिरावट देखि जा सकती है।
यह न्यूज़ सुनने के लिए प्ले बटन को दबाये.