कोलकाता: देश चीनी अधिशेष से जूझ रहा है, और इससे छुटकारा पाने के लिए चीनी निर्यात एक बड़ा अवसर है। खबरों के मुताबिक, अगले महीने से चीनी मिलों द्वारा चीन, ईरान, और कुछ अन्य देशों में निर्यात करने की संभावना है। भारतीय चीनी मिलें अगले महीने शुरु होने वाले चीनी सीजन में शिपमेंट भेजने के इरादे से पश्चिम एशिया, चीन, पूर्वी अफ्रीका, बांग्लादेश, ईरान और श्रीलंका के आयातकों के साथ बातचीत करने में लगी हैं। दक्षिण पूर्व एशिया के सबसे बड़े देश इंडोनेशिया पहले ही भारत से चीनी खरीदने का मन बना चुका है। भारत के पास पहले से ही चीनी का पर्याप्त स्टॉक है और चीनी मिलें अपने चीनी के भंडार से शिपमेंट शुरू कर सकती है। नई फसल के आने का इसे इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 2019-20 सीजन के लिए 6 मिलियन टन चीनी के निर्यात को सब्सिडी देने के लिए पिछले महीने 6,268 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन को मंजूरी दी थी।
भारत ग्लोबल मार्केट में अक्टूबर से अप्रैल 2020 तक चीनी की प्रचुर मात्रा उतार सकता है। ब्राजिल जो कि चीनी में भारत का प्रमुख प्रतिस्पर्धक है, अप्रैल 2020 से ग्लोबल मार्केट में चीनी उतारेगा। हाल के वर्षों में भारत में चीनी के बंपर उत्पादन के कारण भारतीय चीनी मिल मालिकों के पास चीनी के आदिशेष पड़ा हुआ है। इनका निर्यात करके वे अपने स्टाक को खुशी खुशी कम कर सकते हैं। चीनी के अन्य उत्पादक देशों में इसे लेकर चिंता है कि यदि भारत ने अधिक निर्यात करता है तो वैश्विक स्तर पर चीनी की कीमतों पर दबाव पड़ सकता है। हालही में ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और ग्वाटेमाला ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से भारत द्वारा दिए जाने वाले सब्सिडी को चुनौती देने के लिए एक पैनल गठित करने के लिए कहा था।
हालांकि में, इक्रा (ICRA) ने कहा कि सरकार को अक्टूबर से शुरू होने वाले 2019-20 के विपणन वर्ष में छह मिलियन टन चीनी निर्यात हासिल करना चुनौतीपूर्ण होगा। ICRA का मानना है कि, वैश्विक कीमतों को देखा जाए तो निर्यात की तय मात्रा को प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन इस लक्ष्य की एक बड़ी उपलब्धि घरेलू अधिशेष के दबाव से कुछ राहत, घरेलू चीनी की कीमतों में तेजी और किसानों को समय पर गन्ना भुगतान प्रदान करने में मदद होगी।
अधिशेष स्टॉक से निपटना केंद्र सरकार और चीनी उद्योग का प्रमुख लक्ष्य है, जिसके लिए सरकार हर मुमकिन कोशिश में जुटी है। देश चीनी अधिशेष से जूझ रहा है और इसलिए सरकार का मकसद चीनी निर्यात को बढ़ावा देना है। हालही में सरकार ने चीनी अधिशेष को कम करने के मकसद से चीनी के बफर स्टॉक के निर्माण को मंजूरी थी। सरकार ने चीनी उद्योग को राहत देने के लिए हर मुमकिन कोशिश की है, जिसमे सॉफ्ट लोन, निर्यात सब्सिडी और चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य में वृद्धि शामिल है।
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