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कोल्हापुर : चीनी मंडी
महाराष्ट्र में चीनी मिलों ने एकमुश्त एफआरपी राशि के बजाय किसानों को प्रतिटन 2,300 रूपये चुकाए और शेष एफआरपी के लिए इजाद की हुई ‘पैसे के बदले चीनी’ योजना भी विफ़ल रही। पैसे के बदले चीनी लेकर हम कहाँ बेचेंगे, ऐसा सवाल किसानों द्वारा उठाया गया और जादातर किसान इस योजना से दूर ही रहे। स्वाभिमानी शेतकरी संघठन ने चीनी मिलों से एकमुश्त एफआरपी की मांग की थी; लेकिन घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में चीनी और घरेलू उपभोग की कीमतों में गिरावट के कारण मिलें भी एकमुश्त एफआरपी देने के वित्तीय स्थिति में नहीं थी, इसीलिए उन्होंने किसानों के खाते में प्रति टन 2,300 रुपये थी जमा किये और शेष राशि चीनी के माद्यम से देना तय हुआ था।
लेकिन मूल रूप से, किसान कोई व्यापारी नहीं है, तो व्यापारियों की तरह बाजार में चीनी बेचने में कामयाब होने की गुंजाईश काफी कम थी, इसीलिए मिलों के आह्वान पर किसानों ने बहुत कम प्रतिक्रिया दी है। और एक महत्वपूर्ण बात है की, किसानों को किस कीमत पर और कितनी मात्रा में चीनी दी जाएगी ये तय करना बहुत मुश्किल कदम है। किसी भी कच्चे माल का भुगतान माल मिलने के तुरंत बाद किया जाता है, यह बाजार का अलिखित नियम है। हालांकि, चीनी के लिए आवश्यक कच्चा माल है गन्ना लेकिन गन्ने का पैसा चीनी की बिक्री के बाद ही दिया जाता है। अब बाजार में मांग में कमी के कारण, चीनी मिलें किसानों का बकाया समय पर चुकाने में नाकाम साबित हो रही है।
एफआरपी की जगह ‘समझौता फ़ॉर्मूला’…
वैश्विक और घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में गिरावट के कारण मिलों को एफआरपी भुगतान करने में भी कठिनाई हो रही है। देशभर में चीनी मिलों के पास अबतक लगभग 20 हजार करोड़ रूपये तक एफआरपी बकाया पहुँच गया है। सरकार ने गन्ना भुगतान नही करनेवाली मिलों के खिलाफ कड़े कदम उठाये है। इसके समाधान के रूप में, मिलों ने शेष मौसम के लिए किसानों के साथ सीधे अनुबंध करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। अनुबंध के अनुसार, एफआरपी की राशि किसानों को दो या तीन किस्तों में दी जाएगी।
कानून के अनुसार, किसानों के साथ अनुबंध किए बिना 14 दिनों के भीतर एफआरपी जारी करना अनिवार्य है। यदि अनुबंध किया जाता है, तो एफआरपी को किश्तों में भुगतान किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि, मिलों को एफआरपी से कम का भुगतान नहीं किया जा सकता है। राज्य की 8 मिलों ने आम बैठक में दो से तीन चरणों में एफआरपी देने का फैसला किया है। उन्हें सीधे किसानों के साथ अनुबंध भी करना पड़ेगा।
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