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कोल्हापूर: उत्तर प्रदेश में महाराष्ट्र से सस्ती चीनी मिलने की वजह से व्यापारीयों ने लखनऊ का रास्ता पकड लिया है। इसके कारण महाराष्ट्र की चीनी मिलें अपनी चीनी बेचने में विफल रही है। सरकार द्वारा न्यूनतम बिक्री मूल्य में बढोतरी, बिक्री कोटा, सब्सिडी जैसे कई उपायों के बावजूद चीनी मिलें आर्थीक संकट में फंसी है।
कोल्हापूर डीवीजन में 25 लाख मिट्रीक टन चीनी मिलों के गोदामों मे पडी है। आर्थीक नकदी के तंगी से मिलों को काफी परेशानीयां का भी सामना करना पड रहा है।
महाराष्ट्र के चीनी बेल्ट यानी कोल्हापूर, सांगली, सतारा और सोलापूर में चीनी का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है, लेकिन पिछले कई सालों से चीनी उद्योग काफी कठिनाईयों से गुजर रहा है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के चीनी मिलों के गोडाउन चीनी से भरे पडे है।
कई चीनी मिलों के केंद्र सरकार ने जो न्यूनतम चीनी बिक्री मूल्य 3100 रूपये क्विंटल तय किया था, उससे कम किमत में भी चीनी बेची है। इस धांदली के बारे में स्वाभिमानी शेतकरी संघठन ने चीनी आयुक्त शेखर गायकवाड से भी शिकायत की थी। इस शिकायत के बाद चीनी आयुक्त ने न्यूनतम चीनी बिक्री मूल्य से कम दाम में चीनी बेचनी वाली मिलों की तहकीकात जारी कर दी है।
चीनी मिलों की ऋण लेने की क्षमता खत्म होने के कारण बैंकों ने कई सारी मिलों को कर्ज देना बंद कर दिया है। उसकी वजह से चीनी मिलों के पास कर्मचारियों की तनख्वा, एफआरपी भुगतान और अन्य खर्चों के लिए पैसा ही नही है।
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