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रिज़र्व बैंक ने स्पष्ट किया की, ऋण का फैसला बैंक के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स अपने अपने जिम्मेदारी पर ले….
नई दिल्ली : चीनी मंडी
विपणन वर्ष 2018-19 (अक्टूबर-सितंबर) में किसानों का गन्ना बकाया 20,000 करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है। बढ़ता गन्ना बकाया कम करने के लिए केंद्र सरकार ने चीनी मिलों को नरम ऋण (सॉफ्ट लोन) के रूप में 10,540 करोड़ रुपये प्रदान करने का फैसला तो ले लिया, लेकिन बैंकों द्वारा मिलों को ऋण देने की तय सीमा पहले ही खत्म हो चुकी है। इसके चलते रिज़र्व बैंक ने स्पष्ट किया है की, नरम ऋण देने का फैसला बैंक के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स अपने अपने जिम्मेदारी पर ले सकते है। रिज़र्व बैंक की इस भूमिका के चलते सरकार द्वारा नरम ऋण के फैसले का मिलों को कुछ भी फायदा होते नही दिख रहा है।
वर्तमान विपणन वर्ष में चीनी सीझन के पहले दिन से चीनी मिलों को कई कठिनाईयों से गुजरना पड़ रहा है। एकमुश्त एफआरफ़ी की किश्त और मिलों को बैंक द्वारा चीनी पर मिलनेवाला ऋण इसमें बड़ी दुरी के चलते मिलें किसानों का बकाया भुगतान करने में नाकाम हुई थी। मिलों ने सीझन शुरू होने के तीन माह बाद किसानों को दो किश्तों में भुगतान करना शुरू किया, इसके कारण किसानों में आक्रोश बढ़ गया। इसके चलते कई किसान संघठनों ने सरकार और चीनी मिलों के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया।
चीनी उद्योग को इस समस्या से निजाद देने के लिए पिछले हप्ते केंद्र सरकार ने चीनी की न्यूनतम बिक्री मूल्य को 29 रूपये प्रति किलोग्राम से बढ़ाकर 31 रूपये कर दिया। लेकिन घरेलू और वैश्विक बाज़ार में चीनी की कम कीमत और कम मांग के चलते ज्यादातर मिलें किसानों का पूरा बकाया चुकाने में फिर भी नाकामयाब रही है। अब रिज़र्व बैंक के निर्णय के बाद केंद्र सरकार के चीनी मिलों को नरम ऋण के रूप में 10,540 करोड़ रुपये प्रदान करने का फैसला भी कारगर साबित होने की गुंजाईश काफी कम नजर आ रही है।
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