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शुगरकेन एक्ट के आधार पर मिलों ने किसानों के साथ तीन किश्तों में एफआरपी चुकाने के लिए अनुबंध करना शुरू कर दिया है।
पुणे : चीनी मंडी
घरेलू और वैश्विक बाजार में लगातर घटती हुई किमत, निर्यात में चल्र रहा मंदी का दौर के कारण मिलें आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रही है। अधिशेष चीनी की समस्या काफी गंभीर मोड़ ले चुकी है, उसके चलते मिलें किसानों को एकमुश्त एफआरपी चुकाने में भी नाकाम साबित हुई है। लिहाजा,कई सारी मिलों ने शुगरकेन एक्ट के आधार पर किसानों के साथ तीन किश्तों में एफआरपी चुकाने के लिए अनुबंध करना शुरू कर दिया है। किसानों के साथ अनुबंध करनेवाली मिलों की संख्या अब 28 हो गई है।
इस सीजन में 193 चीनी मिलों ने क्रशिंग सीझन में हिस्सा लिया। इन मिलों ने एक मार्च के अंत तक 837.72 लाख टन गन्ने की पेराई की और 9.55 लाख टन चीनी का उत्पादन किया। किसानों को 15 फरवरी तक के क्रशिंग के लिए 12,949 करोड़ 28 लाख रुपये की राशि दी गई है। इसमें से जनवरी और फरवरी में आठ हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। हालाँकि, अभी भी ४८६४ करोड़ ९७ लाख रूपये बकाया भुगतान बाकि हैं। गन्ना नियंत्रण अधिनियम के अनुसार, किसानों को 14 दिनों के भीतर एफआरपी राशि का भुगतान करना अनिवार्य है, अन्यथा मिल को यह राशि 15% ब्याज के साथ चुकानी पड़ती है।
चूंकि अधिकांश मिले गन्ने का एकमुश्त पैसा देने में असमर्थ थे, इसलिए किसान संघठनों ने जनवरी-फरवरी में भारी आंदोलन किया था। गन्ना नियंत्रण आदेश, 1966 की धारा 3 के अनुसार, अगर गन्ना किसानों के साथ कोई व्यक्तिगत समझौता नहीं हुआ है, तो मिलों को 14 दिनों के भीतर एफआरपी का भुगतान करना होगा। बहुतों को इस प्रावधान के बारे में पता नहीं था। इसलिए, कुछ मिलों ने वार्षिक आम बैठक में इसका समाधान किया था। एफआरपी से मिलों पर वित्तीय बोझ को देखते हुए, मिलों ने किसानों के साथ अनुबंध करना शुरू कर दिया है।
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