जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से प्रभावित हो रहा है देश में चीनी का उत्पादन

नई दिल्ली, 2 सितम्बर: वैश्विक जलवायु परिवर्तन समस्त श्रृष्टि के के लिए चिन्ता का विषय बना हुआ है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से खेती और किसान भी अछूते नहीं रहे। बदलती मौसमी परिस्थितियों का वैसे तो हर फ़सल पर असर पड़ रहा है लेकिन ख़ास तौर से गन्ने की खेती और चीनी उत्पादन दोनों पर मौसमी बदलाव और पर्यावरणीय विषमताओं का असर पड़ रहा है। भारत जैसे बडे एरिया वाले गन्ना उत्पादक देश में कई राज्यों के किसानों की आमदनी सिर्फ़ गन्ने की खेती पर ही निर्भर है। ऐसे में वहाँ की चीनी मिलें और इससे जुड़े कामगार और किसान सभी की स्थिति मौसम से प्रभावित होती है।

वैश्विक जगत मे चीनी का उत्पादन अधिकांशत मौसमी परिस्थितियों पर ही निर्भर है। मौसम में निरंतर बदलाव से न केवल चीनी का उत्पादन घट रहा है बल्कि इसकी मिठास और गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है।

हाल ही के वर्षो में अगर देखें तो पता चलेगा कि चीनी के उत्पादन और व्यापार पर मौसमी चक्र भारी रहा है। मौसम की मार के आगे ना तो व्यापारी कुछ कर पा रहे है और ना ही सरकार। हालाँकि मौसम की तमाम अनिश्चितताओं के बावजूद देश का किसान लगातार मेहमत कर गन्ना उपजा रहा है और मिलें चीनी का उत्पादन कर देश के विकास में अपना योगदान दे रही है। हाल ही में जारी एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में भी इस बात का संकेत दिया गया है कि इस साल देश में चीनी का उत्पादन कम हो सकता है। अमरीकी कृषि विभाग के यूएसडीए ने रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि इस साल गन्ने के उत्पादन में कमी आ सकती है। यूएसडीए की रिपोर्ट में अक्टूबर से सितंबर (2019-20) के दौरान चीनी का उत्पादन 8.4 फीसदी से कम होकर 3.03 करोड़ टन रहने का अनुमान है। बीते साल ये उत्पादन 3.43 करोड़ टन था । वैसे तो उत्पादन मे गिरावट के कई कारण है लेकिन जलवायु परिवर्तन और मौसमी बदलाव इसका एक बड़ा कारण है। जिसकी वजह से गन्ना उत्पादन घटने के साथ चीनी उत्पादन में कमी की आशंका जतायी गयी है। ये लगातार दूसरा साल है जब चीनी उत्पादन के आँकड़े उत्पादन कम होने की रिपोर्ट दे रहे है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक (केश क्रॉप) डॉं संजय कुमार झा ने कहा कि भारत में मानसून मध्य जून से अगस्त तक रहता है। इस दौरान कभी बारिश समय पर होती है कभी देरी से होती है। कभी ज़रूरत से ज्यादा बारिश होती है तो कभी सूखा पड़ जाता है। इन सभी मौसमी परिस्थितियों का असर सीधे-सीधे गन्ना की खेती पर पड़ता है। डॉ झा ने कहा कि गन्ना कम होने का असर चीनी उत्पादन पर पड़ता है । क्योंकि देश में में चीनी विपणन वर्ष अक्टूबर से सितंबर के बीच होता है और इसी दौरान गन्ने की फ़सल पैराई के लिये मिलों मे आती है जब मिलो में पैराई को लिए गन्ना कम आयेगा तो उत्पादन भी कम ही होगा। डॉ झा ने कहा कि गन्ने की फ़सल को समय पर पूरा पानी चाहिये। जिन इलाक़ों में नहरों से गन्ने की सिंचाई होती है वहां बारिश कम होने की स्थिति में गन्ने के खेत में पीनी या तो कम पहुँचता है या असमय पहुँचता है उससे गन्ने में शर्करा लेवल कम हो जाता है जिससे प्रोसेसिंग के दौरान चीनी की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

हरियाणा के डीसीएम श्रीराम सुगर मिल निदेशक रोशन लाल टमक ने कहा कि पिछले चीनी वर्ष की तुलना में इस साल गन्ना उत्पादन कम रहने का अनुमान हम लोगों को लिए चिन्ताजनक है। क्योंकि इसके कारण पेराई के लिए मिलों में गन्ना कम आएगा तो ज़ाहिर सी बात है चीनी का उत्पादन भी कम होगा। ऐसी स्थिति चीनी मिलों को आर्थिक तंगी की ओर धकेलेगी। टमक ने कहा कि ऐसी स्थिति में आर्थिक नुक़सान की कमी पूर्ति करने और वित्तीय उपार्जन के लिए हम चीनी उत्पादन के बजाय गन्ने के रस से एथनॉल बनाने को प्राथमिकता देंगे ताकि नगदी हासिल कर वित्तीय नुक़सान से बचा जा सकें।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के गन्न्ना प्रजनन अनुसंधान संस्थान करनाल के निदेशक डॉं संजय कुलश्रृेष्ठ ने कहा कि मौसमी परिस्थितियों का असर चीनी मिलों को आर्थिक तंगी की ओर ले जाएगा। इसलिए हम गन्ने की ऐसी क़िस्में तैयार कर रहे है जो कम पानी और विपरीत मौसमी हालातों में भी अच्छा उत्पादन दे सके। डॉ विशिष्ठ ने कहा कि गन्ने की कई क़िस्मे ऐसी है जो मौसमी परिस्थियों के प्रति सहनशील है। इनमें CO-238 गन्ने की क़िस्म काफ़ी हद तक जलवायु परिवर्तन की पस्थितियों से मुक़ाबला कर अच्छा उत्पादन देती है। डॉं वशिष्ठ ने कहा कि सरकार का पूरा ध्यान किसानों की खुशहाली और चीनी मिलों की आर्थिक तरक़्क़ी पर है। सरकार के इस मिशन को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक समुदाय गंभीरता से काम कर रहा है।

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