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मुंबई: चीनी मंडी
महाराष्ट्र चीनी आयुक्तालय ने 15 मार्च तक किसानों को उचित और पारिश्रमिक मूल्य (एफआरपी) देने में विफल रही 3 मिलों को राजस्व वसूली प्रमाणपत्र (आरआरसी) कोड के तहत आदेश जारी किए हैं। महाराष्ट्र के चीनी आयुक्त शेखर गायकवाड़ ने कहा कि, इन मिलों ने किसानों को एफआरपी के 30% से कम का भुगतान किया था, और इसलिए कमिश्नरेट ने इन मिलों के चीनी स्टॉक को जब्त करने की कार्रवाई शुरू की है। इस सीजन में चीनी आयुक्तालय द्वारा जारी किए गए ‘आरआरसी’ की संख्या 49 हो गई है, जो राज्य के पिछले चार-पांच चीनी सीजन में सबसे अधिक है।
महाराष्ट्र में 100.74 लाख टन चीनी का उत्पादन
अब तक महाराष्ट्र में 100.74 लाख टन चीनी का उत्पादन करने के लिए 901.90 लाख टन की पेराई की है। गायकवाड़ ने कहा कि, सीजन खत्म होने वाला है और हमें अगले महीने तक एफआरपी बकाया 10% तक लाने की उम्मीद है। एफआरपी बकाया राशि 5,700 करोड़ रुपये से कम होकर 4,926 करोड़ रुपये पर आ गई है और लगभग 76% बकाया राशि किसानों को भुगतान की जा चुकी है। कुल देय 20,653 करोड़ के आसपास है और भुगतान का लगभग 75% पूरा हो गया है, उन्होंने कहा कि, अभी 24% देय बाकि है और आयुक्तालय इस आंकड़े को 10% तक लाने के लिए सभी प्रयास कर रहा है।
किसान कार्यकर्ताओं का ‘समझौतों’ को कड़ा विरोध
दिलचस्प बात यह है कि, जैसे-जैसे चीनी मौसम आगे बढ़ा है, एफआरपी भुगतान में देरी के लिए मिलरों और किसानों के बीच समझौतों की संख्या 3 से 30 हो गई है। किसान कार्यकर्ताओं का तर्क है कि, इस तरह के समझौते मान्य नहीं हैं क्योंकि सीजन की शुरुआत में इन पर हस्ताक्षर नहीं किए गए थे, और गन्ना नियंत्रण अधिनियम के अनुसार, क्रशिंग की शुरुआत के 14 दिनों के भीतर एफआरपी भुगतान करने के लिए मिलरों के लिए बाध्यकारी है। आयुक्त ने कहा कि, गन्ना नियंत्रण कानून की धारा 3 में एक प्रावधान है जिसके तहत मिलर्स बाद में भी किसानों के साथ समझौते कर सकते हैं।
इस बीच, किसान कार्यकर्ता, योगेश पांडे ने कहा कि, उन्होंने आयुक्त को एक पत्र सौंपा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिफॉल्टरों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि, वह इस संबंध में चुनाव आयुक्त को एक पत्र भी सौंपेंगे। महाराष्ट्र में कई चीनी मिलों का नेतृत्व राजनीतिक दिग्गज करते हैं।
मिलर्स का मार्च के 24.5 लाख टन उच्च बिक्री कोटा को विरोध
दूसरी ओर मिलर्स केंद्र द्वारा मार्च के लिए 24.5 लाख टन की उच्च बिक्री कोटा का विरोध कर रहे हैं। पांडे ने कहा कि बड़ी संख्या में शिकायतें आई हैं कि निजी चीनी मिलें न्यूनतम फ्लोर प्राइस (एमएफपी) से नीचे व्यापारियों को बेच रही हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। व्यापारियों का कहना है की, एम-ग्रेड और एस-ग्रेड चीनी मूल्य में 30-50 रुपये प्रति क्विंटल का छोटा अंतर अब मौजूद नहीं है और मिलर्स एक ही समय में चीनी के दोनों ग्रेड बेच रहे हैं। नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ के अध्यक्ष, दिलीप वलसे -पाटिल ने बताया कि, चीनी उद्योग चौराहे पर खड़ा है और महाराष्ट्र में ‘गुजरात मॉडल’ अपनाना चाहिए, जहां तीन किस्तों में एफआरपी का भुगतान किया जाता है।
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