राजस्थान में चीनी व्यापारियों को मिलेगा बाजार

यह न्यूज़ सुनने के लिए इमेज के निचे के बटन को दबाये

गंगानगर, 19 जून: राजस्थान के गंगानगर-हनुमानगढ़ बैल्ट में गन्ने की बम्पर खेती होती है लेकिन पंजाब से सटे इन जिलों के पड़ौसी राज्यों पंजाब, हरियाणा के किसानों की तर्ज़ पर अधिक उत्पादन लेने के लिए गन्ना किसान खेतों में रसायनों का बेजा इस्तेमाल कर रहे है। हाल ही में कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जारी हुई एक रिपोर्ट के अनुसार यहाँ पर गन्ना की फ़सल में रसायनों का बेजा इस्तेमाल गन्ना रस, गुड-खांडसारी और चीनी के उत्पादों पर अवशेषी प्रभावों के रूप में सामने आ रहा है जो चिन्ताजनक है।

गन्ना रस, चीनी और खांडसारी में रेजीड्यूअल प्रभावों की चिन्ता को देखते हुए प्रदेश का कृषि विभाग जैविक गन्ने की खेती को बढावा देने की योजना पर काम कर रहा है। प्रदेश के कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने गंगानगर दौरे के दौरान इस मसले पर मीडिया से बात करते हुए कहा कि स्थानीय किसानों को कृषि विभाग द्वारा जैविक गन्ना उत्पादन के लिए ज़ागरुक किया जा रहा है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत किसानों को उत्तम गुणवत्ता का गन्ने का बीज उपलब्ध कराने के अलावा सब्सिडी भी दी जा रही है। ताकि किसान जैविक गन्ने की खेती को ज्यादा से ज्यादा अपनाएँ। मंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार ने बाक़ायदा जैविक गन्ना उत्पादन करने वाले किसानों को चिन्हित कर उनके लिए जैविक क्लस्टर बनाया है। जैविक गन्ने की पिराई के लिए गंगानगर शुगर मिल में अलग से जैविक उत्पाद प्रसंस्करण विभाग बनाया है। यहाँ पर फिक्स समय में सिर्फ़ जैविक गन्ने की प्रोसेसिंग होंगी।

यहाँ से तैयार जैविक गुड एवं चीनी की बिक्री के लिए जैविक हाट लगाकर सहकारी भंडार के माध्यम से गुड व चीनी की बिक्री की जाएगी। अगर चीनी या गुड का उत्पादन ज्यादा होता है तो उसे राज्य से बाहर निर्यात किया जाएगा। निर्यात के लिए जैविक चीनी और गुड की आकर्षक पैकिंग की जाएगी ताकि निर्यात प्रतिस्पर्धा में ग्रेडिंग वरीयता मिले। कृषि मंत्री ने कहा कि जैविक गुड और जैविक चीनी सामान्य की तुलना में अधिक महँगे भावो में बिकेगी तो चीनी मिलों को फ़ायदा होगा, किसानों को दाम भी बढ़कर मिलेंगे और काम करने वालों के लिए रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।

जैविक चीनी, व्यापारियों को लिए भी एक अच्छा मौका है क्युकी उन्हें व्यापार के लिए बेहतरीन बाजार मिलेगा।

स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ बीआर छीपा के मुताबिक़ सरकार की इस पहल से प्रेरित होकर निश्चित तौर पर राजस्थान के किसान गन्ने की फ़सल में रसायनों का प्रयोग करना बंद करेंगे। छीपा ने कहा कि गन्ने में अंधाधुंध रासायनिक खाद व कीटनाशक डालने का असर जूस व गुड़ व चीनी के जरिए मानव स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही है व ज़मीन की ऊर्वरा शक्ति भी कम होती है। इसकी रोकथाम के लिए किसानों को सरकारी स्तर पर लाभयुक्वित विकल्प आधारित जागरुकता करने की ज़रूरत थी जो अब सरकार ने शुरु कर दी है। छीपा ने कहा कि गन्ने की फसल के लिये जैविक स्प्रे के तौर पर किसान 10.0 किलोग्राम एज़ोसपिरिल्लम या गलुकोनएसिटोबैक्टर के साथ 10.0 किलोग्राम फासफोबैक्टीरिया प्रति हैक्टेयर की मात्रा मिलाकर प्रयोग करे तो फ़सल अच्छी होगी और उत्पादन भी बढ़ेगा। छीपा ने कहा कि गन्ने की जैविक खेती के लिए गन्ने की अगेती किस्में- को- 0238, 0239, 0118, 98014 , कोसे- 98231, सी ए एल के- 94184 और सामान्य किस्में- कोसो- 1434, 97261, 8279, कोशा- 5011, कोजे- 88 आदि को क़िसान अपनाएँ।

राजस्थान के कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने कहा कि सरकार किसानों को जागरुक रह रही है साथ ही राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत अच्छी किस्म के गन्ने के जैविक बीज भी किसानों को दिये जा रहे है जो कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाणित है। मंत्री ने कहा कि आने वाला युग जैविक युग है इसलिए दैनिक जीवन में सभी जैविक गुड और चीनी का उपयोग करें और स्वस्थ व सेहतमंद रहकर मिठास से भरी ज़िन्दगी पाएँ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here