मऊ: उत्तर प्रदेश में एक तरफ जहां सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, और बुलंदशहर जैसे जिलों में सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन होता है। वहीं दूसरी तरफ मऊ जैसे जिलों में गन्ना की खेती में लगातार गिरावट देखी जा रही है।रेडरॉट बीमारी और चीनी मिलों द्वारा भुगतान होने वाली आनाकानी से किसानों ने गन्ने की फसल से दुरी बना ली है।
‘अमर उजाला’ में प्रकाशित खबर के मुताबिक, बीते दस वर्षो में लगभग 4900 हेक्टेयर क्षेत्रफल गन्ने की खेती में कमी हुई है। पेराई सत्र 2021-22 की तुलना में 2022-23 में 396 हेक्टेयर क्षेत्रफल की वृद्धि हुई है।
जिले के घोसी, मधुबन, मुहम्मदाबाद गोहना और सदर तहसील क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर गन्ने की खेती होती थी, लेकिन अब गन्ना का रकबा प्रतिवर्ष घटता जा रहा है। 2013-14 में 11459 हेक्टेयर गन्ना का रकबा था, और 2022-23 में 6559 हेक्टेयर तक सिमट गया है। वर्ष 2022-23 के पेराई सत्र में कुल 15 लाख 33 हजार क्विंटल चीनी मिल में गन्ना की तौल कराई थी। कुल 52 करोड़ 44 लाख 30 हजार रुपया गन्ना मूल्य का भुगतान मिल प्रशासन द्वारा किसानों के खाते में कर दिया गया है। बीते पेराई सत्र का मिल प्रशासन ने किसानों के पूरा भुगतान कर दिया हैं।इस संबंध में किसान नेता राकेश सिंह ने कहा, गन्ना खरीद में पारदर्शी व्यवस्था न होने से किसानों को गन्ना की खेती में नुकसान होने लगा। घाटे का सौदा होने के चलते किसान गन्ना की खेती से परहेज कर रहा है।